मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर जिले के मध्य विद्यालय की हालत इतनी बदतर है कि यहां स्कूल जाना भी बड़े खतरे को दावत देने जैसा है। स्कूल की छत से लोहे की छड़ों से सीमेंट का साथ छूट रहा है. खंभे भी दीवारों को जवाब देने लगे हैं. दरारों ने भवन पर कब्जा कर लिया है. कब शिक्षा का ये मंदिर धराशाई हो जाए कुछ कह नहीं सकते. स्कूल की बदहाली देख कोई भी दांतों तले उंगलियां दबा ले. देखकर भी हैरानी होती है कि इस तरह के जर्जर भवन में छोटे-छोटे बच्चे आते भी हैं. बैठते भी हैं और पढ़ते भी हैं. हर दिन हाद’से के डर के बीच जान को हथेली पर रखकर बच्चे यहां पढ़ने आ रहे हैं।
इस स्कूल में 215 बच्चे नामांकित हैं, लेकिन बेहद कम छात्र स्कूल आते हैं. क्योंकि स्कूल की जर्जर हालत देख परिजन स्कूल भेजने में छात्रों को कतराते हैं. हालात ऐसे हैं कि एक साथ 3 क्लास के बच्चों को पढ़ाया जाता है. क्योंकि स्कूल के तमाम कमरे खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. ऐसे में जिन क्लासरूम्स की हालत थोड़ी भी बेहतर है वहां बच्चों को बैठा दिया जाता है. हा’दसे के डर के बीच बच्चों की पढ़ाई हो रही है. उसपर भी ना तो छात्रों के लिए बेंच डेस्क की सुविधा है और ना ही कोई और व्यवस्था. 12 शिक्षकों में से सिर्फ 8 शिक्षक ही स्कूल आ रहे हैं।
बिहार के तमाम जिलों में हर दूसरे स्कूल की हालत यही है. कहीं स्कूल भवन नहीं है, कहीं बिजली और पानी की सुविधा नहीं है, कहीं शिक्षक नहीं है तो कहीं साफ-सफाई की कमी है. ऐसा नहीं है कि ये समस्याएं हाल फिलहाल की हैं. सालों से ये बदइंतजामी का माहौल यूं ही बरकरार है. एक ही ढर्रे पर मानो पूरा शिक्षा विभाग काम कर रहा हो. अधिकारी तो लापरवाही और उदासीनता की हदें पार करते ही हैं जनप्रतिनिधि भी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं और शिक्षा मंत्री हैं कि उन्हें बड़े-बड़े दावे करने से ही फुर्सत नहीं मिलती. शासन से लेकर प्रशासनिक स्तर तक की ये बदहाली देख तो बस यही कह सकते हैं कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था ही राम भरोसे है।
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