कपड़े और जूते खरीदने वाले उपभोक्ताओं को जल्द ही ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। जीएसटी परिषद ने कपड़े और जूते उद्योग के इनवर्टेड शुल्क ढांचे में बदलाव की लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार कर लिया है।
मिली जानकारी के अनुसार, पहले इसे इस साल एक जनवरी से लागू किया जाना था लेकिन अब फरवरी के अंत या मार्च के पहले हफ्ते में जीएसटी परिषद की अगली बैठक के बाद इसे लागू किया जा सकता है। इसमें तैयार कपड़ों पर पांच की बजाय 12 फीसदी जीएसटी लगाने का प्रस्ताव है। हालांकि, दरों का खुलासा अभी नहीं किया गया है। साथ ही जीएसटी दरों में भी बदलाव के भी कई प्रस्ताव हैं।
कपड़ा और जूता उद्योग के कारोबारी लंबे समय से ढांचे में बदलाव की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि जूता बनाने के कच्चे माल पर 12 फीसदी जीएसटी है, जबकि तैयार उत्पादों पर जीएसटी दर पांच फीसदी है। इसी तरह तैयार कपड़े पर पांच फीसदी जीएसटी है। जबकि इसके धागे और अन्य कच्चे माल पर 18 फीसदी तक जीएसटी है। कारोबारी मांग कर रहे थे कि इस नुकसान की भरपाई के लिए कच्चे माल पर चुकाए शुल्क को वापस किया जाना चाहिए।
ख़बरों के मुताबिक, जीएसटी ढांचे में मौजूदा पांच दरों को घटाकर तीन तक सीमित करने पर सुझाव के लिए मंत्रियों का समूह बनाया गया है। दो मंत्रालयों वाला समूह दरों में सुधारों का परीक्षण कर रहा है। यह समूह फरवरी के अंत या मार्च के पहले हफ्ते में अपनी रिपोर्ट परिषद को सौंपेगा, जिसमें दरों की संख्या घटाने को लेकर स्पष्ट सुझाव दिए जाएंगे। माना जा रहा है कि मंत्रीसमूह के सुझाव के बाद जीएसटी परिषद अपनी बैठक में उसपर विचार कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि जीएसटी लागू होने से राज्यों को हो रहे नुकसान की भरपाई जून 2022 के बाद आगे नहीं बढ़ने की उम्मीद है। एक जुलाई, 2017 को लागू जीएसटी एक्ट में कहा गया था कि जीएसटी लागू होने के बाद यदि राज्यों के जीएसटी में 14 फीसदी से कम वृद्धि होती है तो उन्हें अगले पांच साल तक इस नुकसान की भरपाई ऑटोमोबाइल और तंबाकु जैसे कई उत्पादों पर विशेष सेस लगाकर करने की इजाजत होगी। यह पांच साल की अवधि जून 2022 में पूरी हो रही है।
सूत्रों के मुताबिक, निर्यात के लिए जीएसटी इनपुट क्रेडिट साल के अंत तक जारी रहेगी। राज्यों को क्षतिपूर्ति भरपाई के एवज में वसूले जाने वाले उपकर की अवधि भी करीब चार साल बढ़ा दी है। राज्यों को भरपाई के लिए केंद्र ने कर्ज लिया था। इसकी भरपाई मार्च, 2026 तक लग्जरी और हानिकारक उत्पादों पर उपकर के जरिये की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि मार्च, 2026 तक सेस की वसूली से राज्यों द्वारा कोरोना काल में लिए गए कर्ज और ब्याज की भरपाई पर ही खर्च किया जाएगा।
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