नई दिल्ली से हरि वर्मा की ख़ास रिपोर्ट
गुरू पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले तीनों कृषि कानूनों की वापसी का एलान कर दिया लेकिन पंजाब के सभी 32 किसान संगठन और संयुक्त किसान मोर्चा फिलहाल पीएम की आंदोलनकारी किसानों से घर लौटने की अपील पर अमल को तैयार नहीं हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर जलेबी और पंजाब के गांवों में लड्डु बांटकर मुंह मीठा करने वाले किसान इसे धरती पुत्रों की जीत बता रहे हैं लेकिन आंदोलनकारी किसानों की सरकार से अब कई और मांग व अपेक्षाएं हैं।
आंदोलन में मुखर रहे पंजाब के सभी 32 किसान संगठन सिंघु बॉर्डर पर शनिवार को बैठक करने वाले हैं। प्रधानमंत्री द्वारा तीनों कृषि कानूनों की वापसी के एलान के बाद अब पंजाब के किसान संगठन 26 जनवरी के लालकिला हिंसा को लेकर दर्ज मामलों की वापसी और आंदोलन के दौरान मारे गए 700 किसानों के परिजनों को मुआवजे के साथ-साथ गृह राज्यमंत्री अजय टेनी को मोदी मंत्रिमंडल से हटाने की मांग को लेकर सरकार से लिखित भरोसा चाहते हैं। इसके लिए आंदोलनकारी किसान संगठन एक बार फिर संसद के शीत सत्र से पहले सरकार से बातचीत की उम्मीद जता रहे हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों ने संसद के शीत सत्र में तीनों कृषि कानूनों की वापसी की सांविधानिक प्रक्रिया पूरी होने तक इंतजार का मन बना लिया है।
आंदोलनकारी यह भी चाहते हैं एमएसपी की कानूनी गारंटी मिले। जाहिर है, प्रधानमंत्री ने एमएसपी समेत जीरो बजट खेती के लिए कमेटी बनाने का भी एलान किया है, सो इस पर आगे वार्ता का दौर जारी रहेगा।
भाकियू के बूटा सिंह बुर्जगिल का कहना है कि यह किसानों की बड़ी जीत है लेकिन जब तक सरकार की ओर से केस वापसी, मारे गए 700 किसानों को मुआवजा, एमएसपी आदि पर वार्ता नहीं होती, तब तक लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। पंजाब के किसान संगठनों ने अब इस लड़ाई को कमोबेश इस दिशा में लंबा खींचने का मन बना लिया है।
ऐसे में संसद के शीतकालीन सत्र में कानूनों की वापसी के बाद भी किसानों पर से मुकदमे वापसी, पीड़ित परिवारों को मुआवजे और एमएसपी को लेकर सरकार से वार्ता के दौरान लिखित भरोसे के बगैर आंदोलनकारी घर या खेतों में वापसी को तैयार नहीं हैं।
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