मुजफ्फरपुर : जी हां, यह सच है। सोलह आने सच। आप मुजफ्फरपुर आइये और दुनिया के सबसे बड़े वाटर पार्क में जमकर मजे उठाइये, वो भी फ्री में। इसके लिए आपको किसी प्रकार का खर्च भी नहीं करना पड़ेगा।
अब ऐसा किसने कह दिया कि यह जलजमाव है। जी नहीं, यह सच नहीं है। यह वाटर पार्क ही है। मुजफ्फरपुर नगर निगम ने एक बड़े प्लान के तहत इसे तैयार कराया है, ताकि यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके। अगर मैं सच नहीं कह रहा हूं तो आप ही बताएं।
अरे भाई साहब, यह आप कैसे भूल गये कि लगभग पांच वर्षों शहर के विकास के लिए 1200 करोड़ रुपये तत्कालीन नगर विधायक सुरेश शर्मा के समय ही आये थे। लेकिन, नगर निगम ने इसे खर्च करने की जहमत नहीं उठायी। प्रश्न यह है कि अगर इन पैसों से शहर का विकास हो जाता तो यहां पर वाटर पार्क कैसे बनता। यह भी कि अगर वाटर पार्क नहीं बनता तो यहां पर्यटन कैसे शुरू होता।
तस्वीरों में देखिये, आपको यहां पर बच्चे पानी में मजे लेते दिख भी जाएंगे। यह बात और है कि इसमें कभी कभी बडे़ लोग भी शामिल होकर अपनी जान तक से हाथ धो बैठते हैं।
पिछले दिनों इसी वाटर पार्क का मजा लेने के दौरान ही तो शहर के बेला औद्योगिक इलाके में दो लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। अरे भाई, वाटर पार्क का आनंद लें, लेकिन सावधानी जरूरी है। इसमें निगम की भी गड़बड़ी है। शहर में आने वाले लोगों को एयर बैग या लाइफ जैकेट उपलब्ध करा देना चाहिए, जो नहीं किया गया।
इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि निगम की शहर को वाटर पार्क में तब्दील करने की लंबे समय से योजना रही है। इसे अब बारिश की मदद से साकार भी कर दिया गया है। तो देर किस बात की। शहर में आइये और वाटर पार्क का मजा लीजिये। वो भी फ्री में। अब आपको मेरी बात समझ में आ गयी होगी।
शहर के जिस इलाके में चले जाइये, हर तरफ आपको पानी ही पानी दिखेगा। हां, इसमें नाले का पानी मिला है, यह बात अलग है। मोतिझील तो पिछले तीन महीने से ही वाटर पार्क में बदल चुका है। यहां के दुकानदारों ने भी इसे यहां की नीयति मान ली है। करें भी तो क्या। पानी है कि हटता ही नहीं।
अब पानी हटे भी तो कैसे, धूप जो नहीं हो रही। पानी निकलने के लिए जो नाला बनाया गया था, वह तो छोटा पड़ गया और जाम है। इसलिए धूप का ही इंतजार किया जा रहा है। नगर निगम भी कर रहा है और स्थानीय लोग भी। शहर के अन्य इलाके भी वाटर पार्क ही बने हुए हैं। चाहे आप चंद्रलोक चौक चले जाएं, मिठनपुरा जाएं, तिलक मैदान रोड जाएं, जवाहर लाल रोड जाएं या फिर अखाड़ा घाट।
जीरोमाइल इलाका भी वाटर पार्क ही है। यहां तो पुलिसकर्मी भी इसका भरपूर मजा उठा रहे हैं। थाने तक में जाने के लिए नाव की व्यवस्था की गयी है। अब अमर सिनेमा रोड, कच्ची सराय रोड, जेल रोड हो या बिहार यूनिवर्सिटी का इलाका। हर तरफ निगम की कृपा से वाटर पार्क बन चुका है।
अब निगम को शहरवासियों की चिंता क्यों होने लगी। शहरवासी जाएं भाड़ में। चाहे शहर में डेंगू का प्रकोप हो या मलेरिया का, इससे किसे मतलब है। इन्हें तो बस आराम करना है। काम क्यों करने लगे। एक बात और, शायद यहां के जनप्रतिनिधियों को भी इसी वाटर पार्क में मजा आ रहा है। वे भी कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं।
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