भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटने की ख़बरों के बीच चीन के विदेश मंत्रालय का इस मुद्दे पर बयान आया है. चीन ने कहा हैकि दोनों देश सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि चीन ने अपने बयान में साफ़तौर पर ये नहीं कहा किउसकी सेना पीछे हटी है या नहीं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिआन से पूछा, ”भारतीय मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ चीनगलवान घाटी, जहां दोनों देशों के बीच झड़प हुई थी, वहां से टेंट और उपकरण लेकर पीछे हटा है. क्या आप इसकी पुष्टि कर सकतेहैं कि ऐसा हुआ है?
इसके जवाब में चाओ लिजिआन ने कहा, “चीनी और भारतीय सैनिकों ने 30 जून को कमांडर स्तर की वार्ता के तीसरे दौर काआयोजन किया. दोनों ही पक्षों के बीच सहमति बनी कि वो उन बातों पर अमल करेंगे जिसके लिए पिछले दो राउंड के कमांडर स्तरकी बातचीत में सहमति बनी थी और हमने सीमा पर तनातनी कम करने दिशा में प्रभावी क़दम उठाए हैं. हमें उम्मीद है कि भारत भीअपनी तरफ़ से इतनी ही दूरी तय करेगा, दोनों के बीच बनी सहमति को लागू करने के लिए कड़े क़दम उठाएगा, चीन के साथ सैन्यऔर राजनयिक चैनलों के माध्यम से संपर्क में रहेगा और चीन के साथ सीमावर्ती इलाक़ों में तनाव कम करने के लिए काम करतारहेगा.”
रॉयटर्स के मुताबिक सोमवार को उठाए गए क़दम एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनातनी कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण थे. लेकिन सेना की सतर्कता, उनकी तैयारियों और लंबे समय के लिए लद्दाख के पहाड़ी इलाक़ों में हो रही तैयारियों पर इसका बहुतअसर नहीं होगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि सेना को सीमा की नई वास्तविकताओं से निपटने के लिए तैयार रहना होगा जहां पिछले महीने पाँच दशकोंसे अधिक समय के बाद ख़ून बहा था.
इसका सबसे बड़ा कारण दोनों सेनाओ के बीच उच्च स्तर का अविश्वास है जो कि पिछले नौ हफ़्तों में सीमा पर हुई कई घटनाओं केकारण पैदा हुआ है.
दोनों देशों के बीच कमांडर स्तर की बातचीत के बाद गलवान सेक्टर में दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू की. बावजूद इसके 15 जून को गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई.
गलवान घाटी की हिंसा के घाव अभी ताज़ा हैं और उन्हें भरने में वक़्त लगेगा. कहा जा रहा है कि दोनों देश के बीच तनाव कम करनेकी प्रक्रिया में भारत दोगुनी सतर्कता बरत रहा है और हर क़दम सावधानी से उठा रहा है. इसका मतलब है कि पूरी प्रक्रिया में बहुतसमय लग सकता है.
रॉयटर्स ने सेना के एक एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया कि तनाव वाले इलाक़ों में शुरुआती क़दम उठाने में ही दो से तीनहफ़्तों का समय लग सकता है. इसके बाद ही सेना के कमांडरों की बीच बैठक होगी और फिर अगला क़दम उठाया जाएगा. इसकामतलब है कि सेना की तैनाती महीनों नहीं तो कुछ हफ़्तों तक तो खिंचेगी.
सेना को इस बात की भी चिंता है कि शुरुआती क़दम उठाए जाने के बावजूद जब तक चीनी सेना एलएसी के क़रीब बड़ी संख्या मेंमौजूद है, चीन कभी भी उल्टी दिशा में चल सकता है. इसलिए भारतीय सेना अपनी तरफ़ से ढील नहीं देगी, न ही इलाक़ों से सैनिककम करने के बारे में सोचेगी.
सेना और बड़े हथियारों को धीरे–धीरे हटाया जाएगा, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि दूसरा पक्ष कितनी सेना या हथियार हटा रहाहै. रविवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीत बातचीत हुई थी. दोनों ही देशों नेसेनाओं के पीछे हटने और सीमा पर शांति कायम करन के लिए सहमति जताई थी.
डोभाल और वांग इससे पहले 2018 और 2019 में भी मिल चुके हैं. गलवान घाटी में 20 जवानों की मौत के दो दिन बाद 17 जून कोविदेश मंत्री एस जयशंकर की भी वांग यी से बातचीत हुई थी.
सोमवार को अपने बयान में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोभाल और वांग ने एलएसी पर तनाव कम करने की प्रक्रिया में तेज़ीलाने और प्रक्रिया को जल्द ख़त्म करने पर सहमति जताई.
अपने आधिकारिक बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा कि “दोनों पक्ष चरणबद्ध तरीक़े से डी–एस्कलेशन सुनिश्चित करेंगे“. विदेशमंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने “दोबारा इस बात पर ज़ोर दिया एलएसी का कड़ाई से सम्मान करना चाहिए ” और “यथास्थितिको बदलने के लिए एकतरफ़ा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए” और “भविष्य में किसी भी ऐसी घटना से बचने की कोशिश करनी चाहिएजिससे सीमावर्ती इलाक़ों में अशांति और अस्थिरता फैल सकती है“
चीनी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि दोनों पक्षों ने हाल की सैन्य और कूटनीतिक बैठकों में हासिल की गई प्रगति कास्वागत किया, बातचीत और परामर्श करते रहने के लिए सहमत हुए और कमांडर–स्तर पर बनी सहमति को सुनिश्चित करने के लिएजल्द कदम उठाने पर ज़ोर दिया.
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