बिहार में भभुआ के स्थानीय व्यवहार न्यायालय में शनिवार को एक ऐसी अदालत लगी, जहां से मुकदमा लड़ते-लड़ते जवानी खपा बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंचने वाले लोगों को राहत ही नहीं इससे मुक्ति भी मिल गई। अब उन्हें कभी मुकदमे की पैरवी करने के लिए लंबी दूरी तय कर नहीं आना पड़ेगा।
इस राष्ट्रीय लोक अदालत में पक्षकारों को कोर्ट फी भी नहीं देनी पड़ी और करीब 35 साल बाद आपसी सुलह-समझौता से मुकदमा भी खत्म हो गया। ऐसे हजारों मामले इस अदालत से शनिवार को निपटाया गया। इसके लिए जिला जज संपूर्णानंद तिवारी ने बेंच गठित की थी।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता रामअशीष सिंह ने बताया कि यह मामला वर्ष 1987 का है। चैनपुर थाना क्षेत्र के उदयरामपुर के पांच लोग जलावन के लिए जंगल से लकड़ी काटकर घर ले जा रहे थे। इसी दौरान वन विभाग की टीम ने उन्हें पकड़ लिया और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। तब से मुकदमा चल रहा था। इस मुकदमे में विपक्षी पांच लोगों में से मुटुर राय और नौरंग पासवान की मौत हो गई। लेकिन, शेष बचे तीन लोग 55 वर्षीय बगेदू गोंड, 58 वर्षीय मुसाफिर राय, 56 वर्षीय लालचंद राय पैरवी करते रहे।
उन्होंने बताया कि शनिवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकार द्वारा व्यवहार न्यायालय परिसर में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में वन विभाग व विपक्षी के बीच एडीजे वन नम्रता तिवारी की न्यायिक बेंच की समक्ष सुलह-समझौता हुआ। बगेदू बिंद ने समझौता की राशि 1000 रुपये जमा कराकर मुकदमा को निपटारा कराया। इस केस के अन्य पक्षकार मुसाफिर व लालचंद द्वारा पिछली लोक अदालत में समझौता राशि जमा कर दी थी।
अब तीनों लोगों द्वारा पैसा जमा कर देने से मुकदमा खत्म हो गया। वन विभाग की ओर से अधिवक्ता सुमन शुक्ला मौजूद रहे। पूछने पर बगेदू गोंड ने कहा कि अगर हम लोग जानते तो बहुत पहले इतनी राशि जमा कर केस को खत्म करा लेते। केस खत्म होने से वह काफी खुश नजर आए। उन्होंने कहा कि अगर इस राष्ट्रीय लोक अदालत में उनका मामला नहीं आता तो अभी कितने दिन और दौड़ना पड़ता यह कहना मुश्किल है।
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