बिहार में 94 फीसदी अस्पताल मृ’त्यु का मेडिकल सर्टिफिकेट जारी नहीं करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा देशभर के अस्पतालों के जारी आंकड़े से इसका खुलासा हुआ है। बिहार के 683 अस्पतालों के आंकड़े इसमें शामिल किए गए हैं। 683 में मात्र 42 ही ऐसे हैं जिन्होंने मृ’त्यु प्रमाणपत्र जारी किये।
देश में नेशनल सेंटर फॉर डीजीज इन्फॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च के अनुसार मेडिकल सर्टिफिकेट ऑफ कॉज ऑफ डेथ (एमसीसीडी) की रिपोर्ट 35 राज्य जारी करते हैं। इनमें बिहार सबसे नीचे है। बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड में एमसीसीडी कवरेज ख’राब है।
मृ’त्यु के मेडिकल सर्टिफिकेट को महापंजीयक, भारत सरकार (सीआरएस) द्वारा संग्रहित किया जाता है। बिहार में जितनी मौ’तें होती हैं, उसका सिर्फ पांच प्रतिशत ही मेडिकल सर्टिफिकेट जारी होता है। मौ’त को लेकर जो मेडिकल सर्टिफिकेट जारी होते हैं उनमें 62 प्रतिशत सर्टिफिकेट पुरुषों के जबकि 38 प्रतिशत ही महिलाओं के होते हैं। वर्ष 2019 में बिहार में 03 लाख 59 हजार 349 मरीजों की मौ’त हुई, जिसमें सिर्फ 18 हजार 233 को ही मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किये गये।
राज्य के अधिकत अस्पतालों में होने वाली मृत्यु का सर्टिफिकेट जारी नहीं होने से बीमारियों के इलाज को लेकर रणनीति बनाने में बड़ी बाधा साबित हो रही है। यह बेहद निराशाजनक स्थिति है। किसी व्यक्ति की मौत से किस बीमारी से हुई है, उसका विवरण मृत्यु प्रमाण पत्र में दिया जाता है। बड़े स्तर पर खास बीमारी से मौते होने पर उस रोग के नियंत्रण व इलाज को लेकर नई रणनीति बनायी जा सकती है।
अस्पताल प्रबंधन मरीज की मृ’त्यु का मेडिकल प्रमाण पत्र जारी करने के पहले परिजनों को जल्द मृ’त शरीर को अस्पताल से हटाने के लिए बा’ध्य करते हैं। शोकाकुल परिजन भी कागजी खानापूर्ति के पचड़े में नहीं पड़ते हुए मरीज की दवा व इलाज से संबंधित कागजात को लेकर चले जाते हैं।
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