बेतिया, 08 मई। टीबी को क्षय रोग के नाम से भी जानते हैं। यह बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होने वाला एक गंभीर संक्रामक बीमारी है जो किसी को भी हो सकता। बच्चों में टीबी के अधिकांश मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं। यह कहना है जिले के प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ अवधेश कुमार सिंह का। उन्होंने बताया कि टीबी के संक्रमण से बचाव के लिए सरकारी अस्पताल में निःशुल्क मिलने वाला बीसीजी का टीका सही समय पर अवश्य लगवाना चाहिए। इससे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बच्चों को संतुलित आहार का सेवन करवाया जाना चाहिए। साथ ही घर के आसपास के खांसी या बुखार से पीड़ित लोगों से उन्हें दूर रखना चाहिए।
कुपोषित बच्चों में ज्यादातर देखा जाता है टीबी का प्रभाव:
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ रमेश चंद्रा ने बताया कि स्वस्थ बच्चों की अपेक्षा कुपोषित बच्चे जल्दी टीबी का शिकार हो जाते हैं। यदि बच्चे को दो हफ्ते या उससे ज्यादा समय से लगातार खांसी आती है तो टीबी की जांच करानी आवश्यक है। उन्होंने बताया कि टीबी के कीटाणु बच्चे के फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों में बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं। शुरुआत में बच्चों में हल्का बुखार बना रहता है। एक्स-रे व मोंटू टेस्ट के द्वारा टीबी की पहचान की जाती है। उन्होंने बताया कि
टीबी होने पर सरकारी अस्पताल में चिकित्सक से मिलकर जाँच करवानी चाहिए। साथ हीं दवाओं का पूरा कोर्स लेना चाहिए।
लक्षणों के दिखने पर जाँच व इलाज जरूरी:
सिविल सर्जन डॉ श्रीकांत दुबे ने बताया कि टीबी एक गंभीर बीमारी है। इसके शुरुआती लक्षणों को भूल कर भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि टीबी विश्व की सबसे बड़ी जानलेवा बीमारियों में से एक है। इसके लक्षण दिखने पर तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच कराएं। टीबी के लक्षणों को छुपाना खतरनाक हो सकता है। टीबी संक्रमित व्यक्ति का समय पर सही इलाज होना आवश्यक है। मुख्य तौर पर फेफड़ों में टीबी का संक्रमण ज्यादा गंभीर होता है। टीबी से बचने के लिए प्रोटीन तथा विटामिन से भरपूर भोज्य पदार्थ जैसे रोटी, पनीर, दही, दूध, फल, हरी सब्जी, दाल, अंडा, मछली का सेवन करें। सही इलाज व दवाओँ के सेवन से टीबी ठीक हो जाता है। वहीँ इलाजरत होने पर दवा को बीच में नहीं छोड़ा जाना चाहिए अन्यथा यह गंभीर हो जाता है।
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