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श्रावणी मेलाः श्रद्धा के साथ जीविका का बड़ा केंद्र है सु्ल्तानगंज, बिहार और झारखंड

सावन में सुल्तानगंज में कांवरियों को संकल्प पूजा कराने के लिए बड़ी संख्या में पंडे भी गंगा किनारे मौजूद रहते हैं। बिहार और झारखंड से सैंकड़ों पंडे सावन में पूजा-पाठ से कमाई करने यहां पहुंचते हैं। पहले स्थाई और अस्थाई पंडों के बीच संकल्प कराने के अधिकार को लेकर झड़प होती रहती थी। पिछले कई वर्षों से प्रशासन द्वारा पहचान पत्र जारी किए जाने से ऐसी स्थिति अब नहीं रहती है। जानकारों के अनुसार स्थाई पंडों के पास आज भी अपने यजमान का तीन सौ वर्ष पुराना रिकॉर्ड है। पहले कांवरिया आते थे और अपने पंडा के आवास ध्वजागली में ठहरते थे। गंगा स्नान कर गंगाजल ले पंडा के घर पहुंच जल संकल्प कराके दान देकर जाते थे। फिलहाल सुल्तानगंज शहर में लगभग 125-130 पंडों का घर हैं।

वहीं बिहार और झारखंड के विभिन्न जिलों से कमाने के उद्देश्य से आने वाले पंडे नगर परिषद को निर्धारित शुल्क देकर परिचय पत्र बनवा कर वैध पंडा का प्रमाणपत्र हासिल कर पूजा-संकल्प कराते हैं। हालांकि सुल्तानगंज के स्थाई पंडा को भी परिचय पत्र बनवाना पड़ता है। अस्थाई पंडों का काफी भागदौड़ करनी पड़ती है। स्टेशन से मुख्य चौक पर हो कांवरियों के पीछे संकल्प कराने के लिए मनुहार करते हैं। घाट पर संकल्प कराने के बाद वे कांवरियों से भोजन,राशि, वस्त्र आदि मांगते हैं।

पंडों का पंजीयन प्रारंभ

श्रावणी मेला प्रारंभ होने के पूर्व नगर परिषद द्वारा पंडों, फोटोग्राफरों दुकानदारों का पंजीयन शुरू कर दिया है। विभिन्न जिलों से आए पंडा पंजीयन काउंटर पर पहुंचकर काउंटर से फॉर्म प्राप्त कर आवश्यक कागजात के साथ जमा करने में लगे हुए हैं।

पंजीयन कार्य के बहाल संवेदक पंकज केसरी ने बताया कि पंडा के लिए 410 दुकानदार के लिए 410 और फोटोग्राफर के लिए 1110 शुल्क निर्धारित किया गया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में लगभग 2000 पंजीयन हेतु फॉर्म जमा हुआ था और उनके साथ आधार कार्ड आवासीय फोटो लगाना पड़ता है। सत्यापन के बाद नगर परिषद द्वारा पंडों को परिचय पत्र निर्गत किया जाता है।’

पहले ध्वजागली स्थित स्वामी घाट पर लगता था मेला

विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला पहले ध्वजा गली स्थित स्वामी जी घाट (पुरानी सीढ़ी घाट ) पर लगता था। पंडित संजीव झा कहते हैं कि पहले सावन में यह मारवाड़ी समुदाय का मेला माना जाता था। जहां 90 प्रतिशत मारवाड़ी समुदाय के लोग आते थे और 10 ही अन्य समुदाय के लोग रहते थे। उन्होंने बताया कि नई सीढ़ी घाट बनने के बाद यह मेला जहाज घाट और अजगैबीनाथ घाट, नई सीढ़ी घाट पर लगने लगा।

गंगाधाम मूवी बनने के बाद मेले में काफी वृद्धि हुई है। कहते हैं वर्ष 1975 में ध्वजा गली में यह मेला चरम पर था। पंडा चुन्नू मुन्नू लाल मोहरिया, रविंद्र कुमार मिश्रा, संतोष कुमार मिश्रा बताते हैं कि हमलोग 365 दिन श्रद्धालुओं का जल संकल्प कराते हैं और यात्रियों द्वारा स्वेच्छा से दिए गए दान को ग्रहण करते हैं।

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