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हिमाचल प्रदेश की टोपी मधुबनी पहुंचने के बाद इस वजह से बन जा रही खास, जानें

मधुबनी : दीवारों, कलाकृतियों, साडिय़ों और तस्वीरों के बाद मिथिला पेंटिंग अब हिमाचल की टोपी पर छटा बिखेर रही है। सिल्क के कपड़े पर हाथों की कलाकारी इस कला को और ऊंचाई दे रही है। कलाकारों के लिए भी यह पहला मौका है, जब दूसरे राज्य की पहचान पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। टोपियों के निर्माण के साथ मिथिला की परंपरागत पेंटिंग से आकर्षक बना रही हैं। इसकी शुरुआत अप्रैल में हुई थी, इस महीने से आपूर्ति होगी। शुरुआती दौर में हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता से 200 टोपियों की मांग आई है। ग्राम विकास से परिषद के सौजन्य से दो दर्जन कलाकार इसे तैयार करने में जुटे हैं।

Himachal Pradesh's cap is becoming special after reaching Madhubani because  of this - हिमाचल प्रदेश की टोपी मधुबनी पहुंचने के बाद इस वजह से बन जा रही  खास

परिषद के सचिव षष्ठिनाथ झा बताते हैं कि दो माह पहले मिथिला पेंटिंग युक्त हिमाचली टोपी की डिमांड आई थी। उस वक्त यहां ऐसा निर्माण नहीं हो रहा था। एक-दो जगह से और मांग आने पर अप्रैल में टोपियों का निर्माण शुरू किया गया। हिमाचल प्रदेश से कुछ टोपियों को मंगाकर यहां की कलाकारों को दिखाया गया। मिथिला के पाग और हिमाचल की टोपी में समानता होने के कारण कलाकारों ने आसानी से बनाना सीख लिया।

एक टोपी बनाने में कपड़े से लेकर पेंटिंग तक 250 रुपये खर्च होते हैं। वहीं इसे चार से पांच सौ रुपये में बेचा जा रहा है। शहर के रांटी में टोपी तैयार करने के लिए एक दर्जन सिलाई व पीको मशीन लगाई गई है। यहां सिल्क व सूती कपड़े से टोपी तैयार की जा रही है। एक कलाकार प्रतिदिन तीन से चार टोपी तैयार कर लेती है। इसके बाद उसे मिथिला पेंटिंग से संवारा जाता है। इससे प्रति कलाकार 400 रुपये तक की कमाई हो जाती है। ग्राम विकास परिषद इसे आनलाइन माध्यम से बेच रही है।

हिमाचल प्रदेश की टोपी पसंद करनेवाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इसकी मांग की है। वेे अप्रैल की शुरुआत में परिषद की वेबसाइट पर एक दर्जन टोपी का आर्डर दे चुके हैं। षष्ठिनाथ झा ने बताया कि अगले सप्ताह से इसकी आपूर्ति शुरू हो जाएगी।

हाल के वर्षों में मिथिला पेंटिंग का काफी विस्तार हुआ है। परंपरागत और आधुनिक डिजाइन के साथ एक फ्यूजन तैयार किया गया है। यही वजह है कि नवरात्र में यह कुर्ता से लेकर साडिय़ों और कुर्तियों पर दिखती है तो छठ में सूप पर। पेंटिंग वाली कान की बालियों की भी उतनी ही मांग रहती है, जितनी बिंदी की। कोरोना काल में मास्क ने भी पहचान बनाई। मिथिला पेंटिंग के कद्रदान देश और विदेश में हैं। करीब एक दर्जन संस्थाएं आफलाइन और आनलाइन कारोबार कर रही हैं। इनका सालाना कारोबार करीब 10 करोड़ का है।

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