गंगा सहित राज्य की ज्यादातर नदियों का पानी प्रदू’षित हो चुका है। कई नदियों का पानी तो नहाने लायक भी नहीं बचा है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह सच्चाई सामने आई है। सबसे ज्यादा प्रदूषित पानी रक्सौल के सिरसिया नदी का है।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य की नदियों के पानी की गुणवत्ता की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार की है। इसमें शहरों के किनारे से गुजरने वाली नदियों की हा’लत बेह’द ख’राब पाई गई है। छोटी-बड़ी 12 नदियों के करीब 139 स्थलों पर पानी की गुणवत्ता की जांच की गई। रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि नदियों के कई घाटों का पानी पीने और नहाने के लायक नहीं है। यहां तक कि उसे फिल्टर भी नहीं किया जा सकता।
नदियों के पानी में मानव स्वास्थ्य को हा’नि पहुंचाने वाले जीवा’णुओं में टोटल कोलिफॉर्म और फीकल कोलिफार्म नामक जीवाणु मानक से कई गुना अत्यधिक पाए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार रिपोर्ट में अन्य अवयवों में फ्लूराइड, फॉस्फेट, सल्फेट, बीओडी आदि ये सभी मानक के आसपास हैं या थोड़ा बहुत अधिक हैं। बोर्ड ने जिसको लेकर चिं’ता जाहिर की है वो है टोटल कोलिफॉर्म और फीकल कोलिफॉर्म। इन दोनों जीवाणुओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी मानव स्वास्थ्य के लिए ख’तरनाक मानी गयी है।
राज्य की नदियों की गंभी’र स’मस्या है सीवरेज। बिना उपचार के सीधे नदियों में सीवरेज डाला जा रहा है। जिससे टोटल कोलिफॉर्म और फीकल कोलिफॉर्म जीवाणु की संख्या लाखों में पहुंच गई है। प्रदूष’ण नियंत्रण बोर्ड की सख्ती के बावजूद अब भी बिना शोधन के ही नाले का पानी सीधे नदियों में गिर रहा है।
- नदी – घाट – टोटल कोलिफार्म
- सिरसिया – रक्सौल – पांच लाख 40 हजार
- पुनपुन – पुनपुन घाट – एक लाख 60 हजार
- सोन – नवीनगर – साढे तीन लाख
- सोन – डिहरी आन सोन – 92 हजार
- सोन – इंद्रपुरी – साढ़े तीन लाख
- गंडक – कोनहारा घाट – 13 हजार
- गंडक – हाजीपुर पुल – 54 हजार
- गंगा – गांधी घाट – 60 हजार
- बागमती – दरभंगा – 54 हजार
- बुढ़ी गंडक – लाल बगला घाट – 16 हजार
- कोसी – कुरसेला – 35 हजार
- मोती झील- मोतिहारी – एक लाख 60 हजार
- कांवर झील – बेगूसराय – 17 हजार
- डायरिया और चर्मरोग का खतरा
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सह वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार घोष ने बताया कि बिहार की नदियों की सबसे बड़ी समस्या टीसी और एफसी जीवाणु हैं। इनकी संख्या मानक से कहीं अधिक है। इसका मुख्य कारण नगर निकायों से निकलने वाला कचरा और सीवरेज है। सीवरेज को बिना उपचार के सीधे नदी में डाला जा रहा है। हालांकि नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत एसटीपी के बहुत सारे प्रोजेक्ट चल रहे हैं लेकिन रफ्तार बहुत धीमी है। इन नदियों के पानी की हुई जांच :- गंगा, दाहा नदी, घाघरा, कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, सोन, बागमती, सिरसिया, सीकराना, पुनपुन, त्रिवेणी, मोती झील, कांवर झील।
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