Press "Enter" to skip to content

मोबाइल चलाने वाले छोटे बच्चे देर से सीख रहे बोलना, पैरेंट्स इन बातों का रखे ध्यान

मनोरो’ग विशेषज्ञ ने बताया कि पिछले दो-तीन सालों में ऐसे बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जो पूरी तरह से बोल नहीं पाते हैं। कई बार छह माह की उम्र से ही माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल पकड़ा देते हैं। धीरे-धीरे बच्चे इसे अपनी आदत बना लेते हैं। वे एक अलग काल्पनिक दुनिया में खो जाते हैं। एकाकी परिवार के बच्चों में यह समस्या और ज्यादा देखी जा रही है। मोबाइल में व्यस्त बच्चे एक काल्पनिक दुनिया में खो रहे हैं। परिवार के अन्य सदस्यों से बोलना, मिलना-जुलना अथवा बातें करना बेहद कम हो जाता है। यही कारण है कि वे बोलना देरी से सीख रहे हैं।

बच्चों के दिमाग़ पर मोबाइल का दुष्प्रभाव (7 Harmful Effects Of Mobile On  Children)

इससे ही जुड़ा मामला हाजीपुर के एक बड़े व्यवसायी परिवार का हैं जहां चार साल के जुड़वा बच्चे में एक पूरी तरह से बोल नहीं पाता है। वह बच्चा काफी जि’द्दी, चं’चल और आक्रा’मक व्यवहार का हो गया है। डॉक्टर से दिखाने पर पता चला कि बच्चा दिन का ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम, यू ट्यूब, कार्टून देखने में बिताता है। खाना भी तभी खाता है, जब उसके हाथों में मोबाइल हो।साथ ही, पटना के निवासी एक इंजीनियर की 10 साल की बेटी एक बड़े स्कूल में कक्षा चार की छात्रा है। कोरोना काल में लगभग दो कक्षा उसने ऑनलाइन ही पढ़ाई की। सोमवार को वह पीएमसीएच के न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ चिकित्सक से इलाज कराने पहुंची थी। उसको सिर के पिछले हिस्से और रीढ़ में द’र्द, गर्दन की मांसपेशियों में खिंचा’व की समस्या थी। लगातार झुके रहने और गलत पोश्चर में बैठने से उसके गर्दन में भी आगे की ओर ज्यादा झुकाव हो गया है। उसे सामान्य इलाज के साथ ही फिजियोथेरेपी की भी जरूरत बताई गई।

5 tips to keep kids away from mobile | बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए  आजमाएं ये 5 टिप्स

दो साल से कम उम्र से मोबाइल चलानेवाले बच्चे देरी से बोलना सीख रहे हैं। व्यवहार में भी ये अन्य बच्चों की तुलना में जि’द्दी, चिड़चि’ड़ापन, आक्रा’मक, अ’स्थिर और अत्यधिक चंच’ल होते जा रहे हैं। ऑनलाइन क्लास करनेवाले बच्चे भी अब सिर द’र्द, रीढ़ की हड्डी में द’र्द, गर्दन में टे’ढ़ापन और मांसपेशियों में द’र्द की समस्या से ग्रसि’त हो रहे हैं।ऐसे बच्चे बड़ी संख्या में शिशु रो’ग विशेषज्ञ, मनोरो’ग विशेषज्ञ, फिजियोथेरेपिस्ट और न्यूरोलॉजिस्ट के पास पहुंच रहे हैं। न्यूरोलॉजिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बताया गया कि मोबाइल अथवा लैपटॉप पर ज्यादा समय बिताने वाले छोटे बच्चे देरी से बोलना सीख रहे हैं। उनका गर्दन ज्यादा देर तक झुका रहने से सिर और रीढ़ की हड्डी में भी द’र्द की भी शिका’यत बढ़ी है। व्यवहार में भी ऐसे बच्चे ज्यादा जि’द्दी, आक्रा’मक और चंच’ल हो रहे हैं।विशेषज्ञों के मुताबिक,  मोबाइलधारी और कार्टून ज्यादा देखनेवाले बच्चे पढ़ाई में कमजोर, अक्रा’मक, मोटापा के भी शिका’र होते हैं। कई बार वे बड़ी-बड़ी बातें भी बोलते हैं लेकिन बड़े होने पर असली दुनिया का सामना करने में कमजोर साबित हो सकते हैं। अत: इन सब परेशानियों से बचाने के लिए माता-पिता को कई सावधानी अपनानी होगी।बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित करें, अधिकतम एक से डेढ़ घंटे प्रतिदिन मोबाइल-टीवी देखने दें, फील्ड गेम को बढ़ावा दें, आसपास के बच्चों के साथ गेट-टूगेदर करें, घरों में खेलनेवाले सामान्य खिलौने दें, बच्चों के साथ माता-पिता बातें करें। उनके सामने मोबाइल का प्रयोग कम करें, बोलने में परे’शानी ज्यादा हो तो स्पीच फिजियोथेपिस्ट की मदद लें, मनोरोग विशेषज्ञ और न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ से भी सलाह लें। 

Share This Article

Be First to Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *