कोरोना सं’कट और मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद चार वर्षों में राज्य में अनाज के उत्पादन में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। खास बात यह है कि यह वृद्धि उत्पादकता बढ़ने के कारण हुई है। साथ ही सरकारी सहायता से खेती में नई तकनीक के समावेश का भी असर है। अगर मौसम साथ देता तो वृद्धि दर नया मुकाम हासिल कर लेती।मिली जानकारी के अनुसार, विधान परिषद में शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने वर्ष 2020-21 का जो अर्थिक सर्वे को पेश किया वह कुछ ऐसी कहानी कह रहा है। सर्वे के अनुसार राज्य के फसल पैटर्न में अनाज का वर्चस्व अब भी वैसा ही है। खेती के पूरे रकबे में इसका हिस्सा 87.6 प्रतिशत है। गहन अध्ययन करें तो इसमें भी चावल और गेहूं का ही हिस्सा 70 प्रतिशत है। वर्ष 2018-19 में 163.1 लाख टन अनाज का उत्पादन हुआ था। तीन साल बाद वर्ष 2020-21 में यह उत्पादन बढ़कर 179.52 लाख टन हो गया।
पिछले सालों से दलहनी फसलों का रकबा घटता जा रहा है। यह गरीबों को परेशानी में डालने वाला है। हालांकि, गत वर्ष थोड़ा सुधार हुआ था लेकिन इस साल फिर थोड़ी गिरावट आई है। दलहन का रकबा 7.09 प्रतिशत से घटकर 2017-18 में 6.8 प्रतिशत पहुंच गया इस साल रकबा 6.6 प्रतिशत है।ख़बरों के मुताबिक, राज्य में खेती के पैटर्न में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। कुल बुआई क्षेत्र 52.42 लाख हेक्टेयर में फसल क्षेत्र 75.25 लाख हेक्टेयर ही है। पिछले पांच साल से यही स्थिति है। इससे साफ है कि आज भी हमारी फसल सघनता 1.44 प्रतिशत ही है। उत्पादकता में वृद्धि कर उत्पादन तो बढा लिया गया लेकिन फसल सघनता भी बढ़ाना जरूरी है। किसानों की आमदनी बढ़ाने में सबसे अधिक फसल सघनता का ही योगदान होता है। लिहाजा राज्य का लक्ष्य सघनता का तीन प्रतिशत ले जाना है।फलों के बागवाली का रकबा राज्य में 8.28 प्रतिशत बढ़ा है। लेकिन उत्पादन में वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत ही है। खास बात यह है कि आम का उत्पादन 0.87 प्रतिशत घट गया है तो केले का उत्पादन 11.53 प्रतिशत बढ़ा है। इसका रकबा भी लगभग पौने 12 प्रतिशत बढ़ा है। पपीते का उत्पादन 42 प्रतिशत बढ़ा है। इसका रकबा 12 प्रतिशत ही बढ़ा है।
Be First to Comment