छपरा जिले में स्थित चिरांद हर साल आने वाली बाढ़ और उसके कटाव के कारण अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। इस जगह का पौराणिक और पुरातात्विक महत्व काफी अधिक है।
इस जगह को दानी सम्राट मौर्यध्वज़ की धरती होने का सौभाग्य प्राप्त है। लेकिन, इन दिनों यह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। यह वही जगह है जहां देश में नवपाषाण युग का परिचय हुआ था। अब इस इलाके को संरक्षण की सख्त जरूरत है।
अपनी कोख में पुरातात्विक धरोहरों को सहेजे हुए यह इलाका गंगा नदी में आने वाली बाढ़ के कारण कटाव का शिकार होकर लुप्त होने की कगार पर है। नवपाषाण युग का परिचय देने वाली देश की पहली जगह होने का गौरव प्राप्त इस इलाके को संरक्षण की जरूरत है।
सरकार की अनदेखी ने इस इलाके के नदी में विलीन होने की आशंका बलवती होती जा रही है। आप देख सकते हैं नदी के किनारों को रोज ब रोज नदी की धार की मार झेलते हुए अपना एक अंश नदी धारा से कटाव का शिकार होकर में नदी में मिल जा रही हैं।
चिरांद में नवपाषाणकालीन पुरातात्विक महत्व के अवशेष बड़ी मात्रा में मिले है। बताया जाता है कि कश्मीर स्थित बुर्जहोम को छोड़कर सबसे ज्यादा नवपाषाणकालीन उपकरण चिरांद में ही प्राप्त हुए हैं। जो उपकरण मिले हैं वह हिरणों के सींगों से निर्मित हैं।
आज वही चिरांद प्रशासनिक लापरवाही के चलते कटाव का शिकार होते होते खत्म होने की ओर अग्रसर है । सरकार की अनदेखी ने चिरांद की स्थिति को ज्यादा खराब किया है हालांकि स्थानीय लोग इसके संरक्षण को लेकर निजी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन बाढ़ के आगे उनकी एक नहीं चल रही। इस कारण धीरे धीरे चिरांद नदी में विलीन होता जा रहा है।
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