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बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हो रहे हैं चिराग पासवान: पहले गोपालगंज और अब कुढ़नी में बने जीत के बड़े फैक्टर

बिहार: कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में जीत का जश्न मना रही बीजेपी ने अपनी सहयोगी पार्टी लोजपा (रामविलास) और उसके अध्यक्ष चिराग पासवान को एक दफे भी शुक्रिया नहीं कहा है. लेकिन चिराग फैक्टर ही बिहार में बीजेपी की जान बचा रहा है. पहले गोपालगंज औऱ अब कुढनी के उपचुनाव में जीत हासिल करने वाली बीजेपी के साथ अगर चिराग पासवान नहीं होते तो तस्वीर अलग होती.

कुढ़नी में बीजेपी की जीत के बाद चिराग पासवान का कॉन्फिडेंस हाई, एनडीए में वापसी के साथ बढ़ेगा कद?

कुढ़नी में चिराग पासवान के वोट ने किया कमाल

कुढ़नी विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत 3 हजार 649 वोट से हुई है. कुढ़नी में पासवान जाति के वोटरों की तादाद लगभग 10 हजार है. अहम बात ये भी है कि पासवान जाति के वोटरों का वोटिंग परसेंटेज ज्यादा होता है. अगर ये वोट बैंक बीजेपी के साथ नहीं होता तो कुढ़नी का हाल क्या होता इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

दरअसल कुढ़नी में भाजपा की जीत की रूपरेखा तैयार करने में चिराग पासवान ने अहम भूमिका निभायी. 3 दिसंबर को जब विधानसभा क्षेत्र में प्रचार समाप्त हो रहा था तो चिराग पासवान वहां जनसभा करने पहुंचे थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक चिराग पासवान की जनसभा में जो भीड़ उमड़ी वैसी भीड़ बीजेपी के किसी नेता के सभा में नहीं उमड़ी थी. चिराग की सभा में आयी भीड़ नीतीश-तेजस्वी की साझा जनसभा से भी कम नहीं थी.

चुनाव प्रचार के आखिरी दिन चिराग की बड़ी जनसभा ने वोटरों के बीच बड़ा मैसेज दिया. कुढ़नी के वोटरों की बड़ी जमात उस वक्त तक संशय की स्थिति में थी. लेकिन चिराग की सभा के बाद उन्हें लगा कि लड़ाई तो बीजेपी और जेडीयू के बीच ही है और बीजेपी की स्थिति मजबूत है. बाकी पार्टियां तो वोट काट रही हैं. कुढनी विधानसभा क्षेत्र के कई मतदाताओं का कहना था कि चिराग की सभा के बाद न सिर्फ पासवान वोटर आक्रमकता के साथ बीजेपी के साथ आ गये बल्कि इसका मैसेज भूमिहारों में भी गया. उससे पहले मुकेश सहनी की पार्टी से खड़े भूमिहार उम्मीदवार के पक्ष में उनके स्वजातीय वोटरों का अच्छा खासा जमात खड़ा था. उस तबके में ये मैसेज गया कि वीआईपी उम्मीदवार सिर्फ वोट काट सकता है, जीत किसी सूरत में हासिल नहीं होनी है. लिहाजा आखिरी दौर में उनका मिजाज बदला.

बता दें, कि इससे पहले गोपालगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी सिर्फ 2183 वोटों से जीत हासिल की थी. चिराग ने वहां भी प्रचार कर अपने आधार वोट को बीजेपी में ट्रांसफर कराया था. गोपालगंज में भी पासवान वोटरों की तादाद लगभग 10 हजार के करीब है. वहां भी चिराग फैक्टर काम नहीं करता तो शायद परिणाम कुछ औऱ होता.

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