बिहार में सात दलों के सत्तारूढ़ महागठबंधन के दो सबसे बड़े घटक- जदयू और राजद- के बीच कथित दरार की पृष्ठभूमि में, इसमें शामिल छोटे सहयोगियों ने बुधवार को सरकार के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए समन्वय समिति के शीघ्र गठन की मांग की।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दो महीने पहले भाजपा की अगुवाई वाले राजग से अलग होने के बाद राज्य में महागठबंधन बना था। सात दलों के इस महागठबंधन में हाल ही में उस समय खींचतान दिखी जब राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा था कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव युवा नेता अगले साल तक मुख्यमंत्री बन जाएंगे।
इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में कुछ नेता नाराज दिखे थे और अपने विभाग में भ्रष्टाचार की बात स्वीकारने वाले उनके पुत्र सुधाकर सिंह को दो अक्टूबर को प्रदेश के कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि तेजस्वी यादव ने 30 सितंबर को कहा था कि उन्हें राज्य में सत्ता की सर्वोच्च सीट पर आसीन होने की कोई जल्दी नहीं है और उन्होंने राजद कार्यकर्ताओं को एक पत्र लिखा और ऐसे कोई भी बयान देने से मना किया जिससे महागठबंधन में खटास पैदा हो।
भाकपा माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने बताया कि उन्होंने राजद मंत्री सुधाकर सिंह के इस्तीफे के तुरंत बाद उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की और उनसे तत्काल समन्वय समिति गठन किए जाने का आग्रह किया। आलम ने दावा किया कि उपमुख्यमंत्री ने मुझे भाकपा माले नेताओं के नाम देने के लिए कहा जो जल्द से जल्द समिति का हिस्सा होंगे। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि जल्द ही समिति का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अन्य गठबंधन सहयोगियों के नेताओं को भी समिति के लिए अपने प्रतिनिधियों के नाम देने के लिए कहा जाएगा। समिति में प्रत्येक पार्टी के कम से कम दो सदस्य होंगे।
बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में जदयू और राजद के अलावा कांग्रेस, भाकपा माले, भाकपा, माकपा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल हैं जिनके पास 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में 160 से अधिक विधायक हैं। भाकपा माले के पास 12 विधायक हैं। सुधाकर सिंह ने अपने विभाग में भ्रष्टाचार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कृषि रोडमैप पर सवाल उठाकर सरकार की फजीहत कराने के बाद मंत्री पद से रविवार को इस्तीफा दे दिया था।
आलम ने कहा कि चूंकि सिंह सरकार का हिस्सा थे, उन्हें इसके कामकाज पर सवाल नहीं उठाना चाहिए था। इस तरह के कृत्यों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए बिहार में महागठबंधन सरकार के गठन के तुरंत बाद हमने एक समन्वय समिति के गठन और सरकार के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम की मांग की थी।
भाकपा के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अंजान ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही समन्वय समिति के गठन के पक्ष में रही है। उन्होंने कहा कि हमारे नेता राम नरेश पांडेय और केदार पांडेय ने सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री से मुलाकात की और इस विचार का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने कहा कि हाल के घटनाक्रम की मांग है कि हमारे पास एक समन्वय समिति होनी चाहिए। मुख्यमंत्री इस विचार के खिलाफ नहीं थे। अंजान ने कहा कि मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीटों के उपचुनाव के मद्देनजर ऐसी समिति का गठन किया जाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उपचुनाव बहुदलीय गठबंधन के लिए अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने का एक अवसर होगा।
कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने गठबंधन के भीतर हाल की खींचतान पर टिप्पणी करने से कतराते दिखे पर एक समन्वय समिति की आवश्यकता पर सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि एक समन्वय समिति के गठन के संबंध में चर्चा हुई है और यह बाद में नहीं बल्कि जल्द ही अमल में आएगा।
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