पारंपरिक खेती धान-गेहूं से इधर भोजपुर के किसान सब्जी की खेती को बढ़ावा देने का प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन इसमें कई तरह की बाधा’यें आ रही हैं। उदवंतनगर प्रखंड के डिलीया गांव के लगभग ढाई दर्जन किसानों ने सब्जी की खेती खासकर मूली, भिंडी, धनिया, लौकी और पालक सहित कई सब्जियों की खेती की है।
इसमें मूली की खेती लगभग 10 एकड़ में की गई है। मूली लगभग तैयार है और अब बिक्री का समय भी आ गया है। लेकिन, की’ड़े लगने से मूली बर्बा’द होने लगी है। मूली लाल होकर ख’राब हो जा रही है और खाने योग्य नहीं रहने से खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। खेत से मूली लेकर किसान बाजार तो जा रहे हैं, लेकिन बिक्री नहीं होने पर निरा’श हो वापस लौटना पड़ रहा है।गांव के किसानों का कहना है कि मूली में की’ड़े लगने से करीब चार माह की मेहनत बेकार हो गयी है। साथ ही खेती में खर्च की गई लागत भी डू’बने का ड’र सताने लगा है।किसानों का कहना है कि वे लोग पिछले चार-पांच सालों से मूली की खेती कर रहे हैं। बीते दो सालों से मूली तैयार होने पर की’ड़े लग जाते हैं। आरा शहर के कई की’टनाशक विक्रेताओं की दुकानों से अनेक प्रकार की दवाओं का छि’ड़काव करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हो रहा है।
लगातार प्रयास करने और हर साल घाटे के बाद भी किसान मूली की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब इसकी खेती से उनका मोहभं’ग होने लगा है। उनका कहना है कि अब मूली की खेती नहीं कर सकते। कृषि विभाग की ओर से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही है।मूली में कीड़े लगने की शिका’यत बीते कुछ सालों से आ रही है। कई तरह की दवाओं के प्रयोग के साथ नीम की खली प्रयोग करने को कहा गया था। इसके साथ स्लाईपर नामक कीट’नाशक का छिड़’काव करना था। पर बाजार में स्लाईपर उपलब्ध ही नहीं है।
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