देश में बिहार चुनाव को लेकर धीरे-धीरे सियासी पारा चढ़ने लगा है। बिहार को जनता लुभाने का प्रयास भी हर स्तर पर किया जा रहा है। उसी क्रम में बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले हफ्ते ‘सवर्ण आयोग’ को फिर से शुरू किया। उन्होंने नए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त किया।

नए सदस्यों ने अपनी पहली बैठक की। उन्होंने राज्य में गरीब सवर्णों के लिए और अधिक लाभों पर जोर दिया। चुनाव से पहले नीतीश के इस कदम को वोट बैंक से जोड़कर देखा जा रहा है।



जानकारों का मानना है कि नीतीश के इस दांव से तेजस्वी यादव खेमे में गुणा-गणित चल रहा होगा। क्योंकि पिछले चुनाव में सवर्ण वोट बैंक एनडीए से थोड़ा छिटका था और वोट बैंक महागठबंधन की तरफ गया था।



ऐसे में चुनाव से ठीक से पहले बिहार सरकार के इस दांव को सियासी नजरिये से भी देखा जा रहा है। आयोग का उद्देश्य सवर्ण जातियों के गरीब परिवारों की पहचान करना है।


2023 में हुए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के बाद, आयोग अब सवर्ण परिवारों की मदद करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है। आयोग ने सरकारी नौकरियों में उम्र में छूट और गरीब छात्रों के लिए मुफ्त कोचिंग जैसी संभावनाओं पर काम करने के लिए कमेटियां बनाई हैं।


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