पिछले कुछ वर्षों में बिहार में बाढ़ लगातार विकराल रूप लेती जा रही है. 2021 से लेकर 2024 तक की स्थिति पर नजर डालें, तो बाढ़ ने न सिर्फ सैकड़ों लोगों की जान ली, बल्कि हजारों गांव, लाखों लोग और करोड़ों रुपये की संपत्ति को तबाह कर दिया.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में पूरे देश में बाढ़ से सबसे ज्यादा मौतें बिहार में हुई थी. राज्य में बाढ़ के कारण कुल 351 लोगों की जान गई, जो किसी एक राज्य में दर्ज सबसे बड़ी संख्या थी.


2021 में बिहार में कुल आकस्मिक मौतों की संख्या 15,405 रही, जो 2020 के मुकाबले 6.4% अधिक थी. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, लू और बिजली गिरने से कुल 830 मौतें हुई. जिनमें 587 पुरुष और 243 महिलाएं शामिल थीं. इसके अलावा डूबने, भवन गिरने, आग लगने आदि कारणों से भी करीब 14,575 लोगों की जान गई थी.


2022 में बाढ़ ने आर्थिक स्थिति से बड़ा नुकसान पहुंचाया. राज्य के जल संसाधन विभाग को करीब 512 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. इनमें से 345 करोड़ रुपये तटबंधों की मरम्मत और 62 करोड़ रुपये जमींदारी बांधों के पुनर्निर्माण पर खर्च किए गए.


118 किलोमीटर तटबंध क्षतिग्रस्त हुए, जिससे पानी का फैलाव और बढ़ गया. 3 लाख हेक्टेयर से अधिक फसलें बर्बाद हुई, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. 12.67 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और 361 पंचायतें इसकी चपेट में आई.


पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, सुपौल, सहरसा जैसे जिले सबसे अधिक प्रभावित रहे.
बाढ़ की प्रमुख वजह हिमालय से आने वाली नदियां- कोसी, बागमती और गंडक रहीं, जो हर साल उत्तर बिहार में तबाही मचाती हैं.

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