बिहार में सियासी खेमाबंदी हो चुकी है। आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में पिछली बार पांच पार्टियां थीं। अब यह बात का समूह हो गया है। एनडीए में इस बार भी पांच पार्टियां हैं। पिछली बार मुकेश सहनी की वीआईपी साथ थी। तब साथ रही वीआईपी अब महागठबंधन का हिस्सा बन गई है। इस कमी की भरपाई उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) ने कर दी है।

यानी इस बार विधानसभा चुनाव में एक तरफ महागठबंधन के सात दल होंगे तो दूसरी तरफ एनडीए की पांच पार्टियां मुकाबले में होंगी। दोनों गठबंधनों में सीटों की जिस तरह की दावेदारी घटक दल पेश कर रहे हैं, उससे अब अन्य दलों को जोड़ना उनके लिए मुश्किल होगा।

महागठबंधन और एनडीए के घटक दलों के नेता सीटों के लिए अपनी-अपनी दावेदारी पेश करने लगे हैं। कांग्रेस को कम से कम पिछली बार जितनी ही 70 सीटें चाहिए। वाम दल भी 30 से ज्यादा सीटें चाहते हैं। ने पार्टनर बने मुकेश सहनी 60 सीटों और डेप्युटी सीएम की रट लगाए हुए हैं। यानी आरजेडी को छोड़ महागठबंधन के बाकी सहयोगियों का ही 160 से अधिक सीटों की दावेदारी है।

पिछली बार आरजेडी 144 सीटों पर लड़ा था। इसलिए वह अपनी सीटों में शायद ही कटौती के लिए तैयार हो। अगर ये अपनी दावेदारी पर अड़ते हैं तो 304 सीटों तक आंकड़ा पहुंचता है, जबकि विधानसभा की कुल सीटें 243 हैं।


राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) भी अब महागठबंधन में हैं। उसे भी कुछ सीटें देनी ही होंगी। यानी महागठबंधन में सीटों की जिस तरह की दावेदारी सामने आ रही है, उससे अब और दलों को जोड़ना मुश्किल होगा।



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