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लालू प्रसाद 77वां जन्मदिन कल, बिहार के हर जिले में मनाए जाने की खुशी से कार्यकर्ता उत्साहित

पटना: इंडिया गठबंधन के साथ राजद ने इस लोकसभा चुनाव में बिहार से 9 सीटें अपने नाम की हैं। इस जीत की खुशी में एक और खुशी जुड़ गई है। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद का कल यानी 11 जून को 77वां जन्मदिन है।  उत्साहित कार्यकर्ताओं ने लालू के जन्मदिन को बिहार के सभी जिलों में मनाए जाने की खुशी प्रकट की है।

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इंडिया गठबंधन की जीत के बाद कार्यकर्ताओं में खासा उत्साह देखा जा रहा है। इसी के साथ कार्यकर्ताओं ने लालू के जन्मदिन को राज्य के सभी जिलों में मनाने की बात कही है। जिला-प्रखंड स्तर पर जन्मदिन को और बड़े स्तर पर मनाने की बात कही है।  लालू की लोकप्रियता देश-विदेश तक रही है। अक्सर वो अपने विरोधियों को अपने खासे देशी अंदाज में जबाव देते हुए देखे जाते हैं। लालू का जन्म बिहार के गोपालगंज के फुलवरिया गांव में हुआ था।  लालू का बचपन अभावों के कारण संघर्षों में बीता है। यही संघर्ष और जमीनी जुड़ाव उनके बोल-चाल में झलकता है।

लालू के पिता का नाम कुंदन राय और माता का नाम मरछिया देवी था। उनका बचपन संघर्षों भरा रहा है। उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपनी गरीबी का जिक्र किया है। इस किताब में जिक्र है कि उन्हें खाने के लिए खाना और पहनने के लिए कपड़े नहीं होते थे। वे गांव में भैंस और अन्य जानवरों को चराते रहते थे।  लालू यादव बचपन से बेहद शरारती थे। उनकी इसी शरारतों के कारण उन्हें पटना पढ़ने के लिए भेजा गया था। पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने पहले एलएलबी और फिर राजनीतिक विज्ञान से मास्टर की डिग्री ली। पढ़ाई-लिखाई खत्म करने के बाद उन्होंने क्लर्क का काम भी किया है।

पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव बनकर उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। फिर जेपी आंदोलन से जुड़े और जेल गए। कहा जाता है कि यहीं से लालू ने अपनी राजनीतिक उड़ान भरी।  साल 1977 में जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और सबसे कम उम्र में सासंद बन गए।

 

 

जब लालू ने रेल मंत्रालय संभाला तो इनके प्रबंधन की तारीफ चौतरफा हुई थी। उनके कार्यकाल में रेलवे ने काफी लाभ भी कमाया था। सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि ये लाभ बिना किसी यात्री किराये या माल भाड़ा को बढ़ाए हुआ था।लालू के जीवन के कुछ पन्नों में कालिख लगी हुई है जिसके दाग वो चाहकर भी कभी नहीं साफ कर सकते हैं। राजद सुप्रीमों पर चारा घोटाले का आरोप लगा। इस कारण उन्हें साल 1997 में सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि इसी के बाद से राबड़ी देवी प्रदेश की मुख्यमंत्री में शामिल हुईं।

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