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सूख गईं बिहार की 60 नदियां, बैशाख में ही पानी की जगह दूर-दूर तक नजर आ रहे रेत

पटना: इस बार बैशाख में ही बिहार की नदियां सूखने लगी हैं। इनमें पानी की जगह दूर-दूर तक रेत नजर आ रहे हैं। घास झाड़ी उग आये हैं। यह पहली बार है जब अप्रैल में ही नदियों में पानी नहीं है। आलम यह है कि अबतक पांच दर्जन से अधिक नदियां सूख चुकी हैं। पिछले पांच-छह वर्षों से राज्य में गर्मियों के दस्तक देने के साथ ही नदियों के सूखने का सिलसिला आरंभ हो जाता है।

Bihar: क्रिकेट का मैदान नहीं नदी है ये, फरवरी में ही सूख गईं बिहार की नदियां,  जल संकट का डर bihar water crisis rivers like gandak ghoghari daha drains in  february seems

इस साल यह समस्या और विकराल बनकर सामने खड़ी है। ये नदियां बिहार की जीवन रेखा हैं। इस कृषि प्रधान राज्य में खेती- किसानी और पशुपालन नदियों और जलस्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा गंभीर संकट देश के आम चुनाव में इस बार भी मुद्दा नहीं है। किसी भी पक्ष से न तो इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया जा रहा और न इन्हें बचानेकी पहल का कोई ठोस वायदा किया जा रहा है।

जीवन दायिनी नदियां कई कारणों से सूख रही हैं। सबसे बड़ा कारण नदियों की पेट गाद से भर जाना है। इससे नदियों की काया लगातार दुबली होती जा रही है। पानी को अपनी पेट में जमा करने की इनकी क्षमता कमतर होती गई है। साथ ही नदियों के बड़े भूभाग पर अतिक्रमण भी पानी के सूखने का कारण है। कई इलाकों में नदियों व जलस्रोतों का किनारा भरकर लोग घर बना रहे हैं। आबादी बढ़ने के कारण नदियों के किनारे बसे शहरों में खासतौर से यह समस्या भयावह बन गई है। अतिक्रमण से नदियों के पाट सिकुड़ गये हैं। कई जगहों पर प्रवाह बंद हो गया है। नदियों का इस्तेमाल डंपिंग जोन के रूप में भी हो रहा है।

जहां नदियों का पानी कल-कल कर बहता था, वहां कूड़ा निस्तारण क्षेत्र बना दिया गया है। अंधाधुंध बोरिंग का इस्तेमाल भी नदियों के सूखने की वजह है। नदियां भोजन, पानी, बिजली, परिवहन, स्वच्छता, मनोरंजन व अन्य स्रोतों के रूप में हमें उपकृत करती हैं पर नदियों के सूखने के कारण इन सभी पर संकट उत्पन्न होने लगा है। नदियों के मामले में समृद्ध बिहार में इनका सूखना कई समस्याएं लेकर आया है।

नदियों के सूखने से कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं। भू-जल स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे गिर रहा है। कहीं-कहीं तो 50 फीट नीचे चला गया है। इससे पेयजल संकट पैदा हो गया है। कुआं, तालाब, आहर-पईन के सूखने का सिलसिला आरंभ है। नहरों में पानी नहीं है। इन जल स्रोतों में पानी पहुंचने के रास्ते अतिक्रमण कर अवरुद्ध कर दिए गए हैं। इस कारण इनमें पानी का भंडार नहीं हो पा रहा है। सिंचाई के अभाव में खेती किसानी पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खेतों की नमी कम हो रही है। माल-मवेशी और पशु-पक्षियों के लिए भी पानी का संकट गहरा गया है। लोगों के स्वास्थ्य तथा उसकी दिनचर्या पर भी नदियों के सूखने का असर गंभीर असर पड़ा है। कई इलाकों में जलस्तर नीचे चले जाने से चापाकल बंद हो जाते हैं। जलापूर्ति की योजना बाधित हो जाती है। गंभीर पेयजल संकट से लोगों को जूझना पड़ता है। कैमूर-गोपालगंज के कई इलाकों में पशुपालकों को मवेशी के साथ दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है।

 

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