पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर अटकलों का बाजार गरम है. चर्चा है कि नीतीश एक बार फिर से पलटी मारकर एनडीए के खेमे में खड़े होने वाले हैं. बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने जैसे ही नीतीश के लिए नोएंट्री का बोर्ड हटा दिया है, राजद सुप्रीमो लालू यादव की नींद उड़ गई।
वह अपने अपने बेटे तेजस्वी यादव के साथ भागे-भागे नीतीश से मिलने पहुंचे. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार का राजनीतिक पारा उबाल मार रहा है. चुनावी लिहाज से नीतीश कुमार आज सभी के लिए जरूरी हैं लेकिन ऐसा क्या हो गया कि नीतीश के लिए बीजेपी से दोस्ती मजबूरी बन गई है।
मौजूदा दौर में नीतीश कुमार के बिना बिहार की राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती. ये नीतीश कुमार की पॉलिटिकल पॉवर ही है कि नंबर चाहे जितने हों या सहयोगी कोई भी हो, मुख्यमंत्री हमेशा नीतीश कुमार ही बनते हैं. दरअसल, लालूराज में जिस बिहार की पहचान अप”राध, न’रसंहार, बेरो’जगारी और चौपट अर्थव्यवस्था के रूप में थी, नीतीश उसे पटरी पर लाने में सफल हुए हैं. बीजेपी के साथ मिलकर उन्होंने प्रदेश को बीमारू राज्य से बाहर निकालकर विकास की धारा में जोड़ने का काम किया और सुशासन बाबू कहलाए. उनके नेतृत्व में एक ऐसा भी दौर आया जब बिहार की ग्रोथ रेट पूरे देश में सर्वाधिक हो गयी थी।
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