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जातीय गणना रिपोर्ट पर सुशील कुमार मोदी ने नीतीश-तेजस्वी से कुर्सी छोड़ने की कर दी मांग

पटना: बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर को जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। सरकार इसे बड़ी कामयाबी मान रही है. इस रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं. जिनके आधार पर कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने हिट विकेट कर लिया है. दरअसल, लालू यादव का कहना है कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। इस हिसाब से अतिपिछड़ों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होनी चाहिए। रिपोर्ट के हिसाब से अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है, जबकि पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 27 प्रतिशत है।

नीतीश-तेजस्वी की मुलाकात ने बढ़ाई राजनीति सुगबुगाहट, एक महीने के भीतर दूसरी  बार मिले - bihar nitish kumar tejashwi yadav meeting politics ntc - AajTak

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है. बीजेपी के राज्यसभा सांसद और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने नीतीश-तेजस्वी से कुर्सी छोड़ने की मांग कर दी है. सुशील मोदी ने कहा कि जातीय सर्वे में कितनी ईमानदारी बरती गई और राजनीतिक आकाओं के इशारे पर कितनी गड़बड़ी की गई, यह तो जांच से ही पता चलेगा. उन्होंने आगे कहा कि यदि जातीय सर्वे के आंकड़े सही हैं, तो सबसे बड़ी आबादी (36 फीसदी) वाले अति पिछड़े समाज का व्यक्ति ही मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम होना चाहिए।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि सर्वे का सम्मान करते हुए नीतीश कुमार और तेजस्वी प्रसाद यादव को अतिपिछड़ों के लिए गद्दी छोड़नी चाहिए. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार 33 साल से अतिपिछड़ों के वोट से राज कर रहे हैं. सुशील मोदी ने कहा कि भाजपा को जब भी मौका मिला तो उसने अतिपिछड़ा समाज को आगे बढ़ाया. बीजेपी की ओर से ही रेणु देवी को डिप्टी सीएम बनाया गया. इसी वर्ग के हरि सहनी को पार्टी ने विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाया गया. उन्होंने कहा कि 14 फीसद मुस्लिम आबादी को अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल दिखाकर हिंदू समाज के इस वर्ग की हकमारी करने की साजिश की गई है.

बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति का आधार शुरू से ओबीसी कैटेगरी के सबसे संपन्न और दबंग माने जाने वाले यादव और कुर्मी रहे हैं. यादवों की जनसंख्या 14 फीसदी है पर ओबीसी आरक्षण की सारी मलाई ये लोग ही काट रहे थे. वहीं कुर्मियों की आबादी सिर्फ 2.87 प्रतिशत है, लेकिन नीतीश कुमार पिछले 17 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं. नीतीश सरकार में भी अति पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-सामाजिक दशा पिछड़ी जातियों से बुरी है. नीतीश कैबिनेट में अतिपिछड़ा समाज से सिर्फ 5 मंत्री हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग से 12 मंत्री हैं. अब न्याय तो यही कहता है कि सरकारी योजनाओं पर अब सबसे अधिक लाभ अति पिछड़ा वर्ग को मिलना चाहिए.

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