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सीवान के नितेश गूगल के टॉक शो में रखेंगे अपने विचार, 2017 से आदिवासियों के उत्थान के लिए कर रहे काम

सीवान एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार सीवान के नितेश को गूगल ने आमंत्रण पत्र भेजा है। नितेश भारद्वाज सामाजिक कार्यकर्ता हैं और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।

सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यों को लेकर ही गूगल ने टॉक शो में बात रखने के लिए आमंत्रित किया है। नितेश भारद्वाज ने अपनी उपलब्धियों से न केवल अपने जिले का, बल्कि राज्य का भी मान बढ़ाया है। सीवान के रहने वाले नितेश को गूगल न्यूज इनिशिएटिव की ओर से आयोजित गूगल समिट के टॉक सीरीज से बुलावा आया है।

यह समिट 12 सितंबर को ऑनलाइन हो रहा है. इस कार्यक्रम में नितेश आखिरी ऐसे वक्ता हैं जो अपनी संस्था आदिवासी जनजागृति के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के तौर-तरीकों पर अपनी बात रखेंगे.नितेश के द्वारा किए गए कार्यों की वजह से दुनिया की कई क्रिएटिव संस्थाओं ने उनके ऊपर डॉक्यूमेंटरी फिल्म भी बनाई है. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. नितेश भरद्वाज आधा दर्जन संस्थानों में अपने संस्थाओं के द्वारा लाए गए बदलाव पर अपनी राय साझा कर चुके हैं। जिनमें एडसन टैंडोक सह- प्राध्यापक नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, ब्रिस कॉर्बेट, संस्थापक, स्क्विज़ किड्स, हेगर हेशम,परियोजना अधिकारी, खोजी पत्रकारिता के लिए अरब रिपोर्टर (एआरआईजे) और एंडिसिवे मे,पॉडकास्ट प्रोडक्शन के प्रमुख शामिल है।

 

आदिवासी जनजागृति संस्था के जरिए नितेश 200 गांवों में काम कर रहे हैं. नितेश की टीम में 45 सदस्य हैं. संस्था के माध्यम से गांव में जाकर योजनाओं की स्थिति को लेकर शॉर्ट वीडियो बनाते हैं. स्थानीय लोगों से संवाद स्थापित करते हैं. साथ ही सरकार और प्रशासन तक गांव की समस्या को पहुंचाने की कोशिश करते हैं. यही नहीं इनकी संस्था के नाम पर महाराष्ट्र के नंदूबार जिला प्रशासन ने स्थानीय सड़क का नाम भी रखा है.नितेश भारद्वाज सीवान जिले के दरौंदा प्रखंड अंतर्गत पिपरा गांव के रहने वाले हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व शिक्षक वीरेंद्र ठाकुर के पोते हैं. नितेश ने साल 2017 में आदिवासी जनजागृति संस्था की शुरुआत की थी और यह संस्था बहुत ही कम समय में अपने लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ी और इसका प्रयास सार्थक होता जा रहा है. यह संस्था महाराष्ट्र के नंदुरबार में आदिवासियों के लिए काम कर रही है. इस गांव में आजादी के 76 साल बाद भी सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

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