मुजफ्फरपुर: नागपंचमी पूजा जिले में उल्लास के साथ की गई। जिले में करीब 50 से अधिक गांवों में नागपंचमी पर विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है। पूजा में दूर-दूर से श्रद्धालु दूध, लावा, फूल माला व गेरुआ चढ़ाने पहुंचे थे। शहर के बीबीगंज स्थित प्रसिद्ध विषहर स्थान पर सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। इस मौके पर जगह-जगह लगे मेले में कहीं विदेशिया रंगमंच कलाकार अपनी प्रस्तुति दे रहे थे तो कहीं लोक कलाकारों द्वारा गीत संगीत की प्रस्तुति की जा रही थी। कहीं प्रोजेक्टर पर सिनेमा दिखाये जा रहे थे तो कहीं बच्चे झूलों का आनंद ले रहे थे।
मेला में नाग देवता के दर्शन का विशेष महत्व
नागपंचमी मेले में नाग दर्शन का अधिक महत्व होता है। मेले में सपेरे भी सांप को लेकर मौजूद थे। मनियारी के मधौल गांव में एक व्यक्ति शंकर के स्वरूप में दिखा। एक हाथ में त्रिशूल डमरू तो दूसरे नाग को पकड़ रखा था। मौजूद लोग मोबाइल में इस यादगार पल को कैद कर रहे थे। पुजारी ने बताया कि मधौल गांव में सौ वर्षों से विषहर पूजा होती आ रही है। यहां पर तंत्र साधना के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
इसके अलावा मड़वन में भव्य रुप से नागपंचमी पूजा हुई। यहां एक माह तक मेला लगता है। नागपंचमी पर यहां कई प्रखंडों के श्रद्धालु दूध लावा चढ़ाने आए हुए थे। बड़कागांव, सरैया, पारु, मीनापुर, बोचहां, कुढ़नी के बलौर, मुरौल, अमरख आदि गांवों में विषहर पूजा धूमधाम से मनाई गई।
पांच फणों वाला नाग बनाकर पूजा करने का रहा है विधान
पंडित ने बताया कि महाभारत में जन्मेजय के नाग यज्ञ के दौरान बड़े-बड़े विकराल नाग अग्नि में आकर जलने लगे। उस समय आस्तिक नामक ब्राह्मण ने सर्प यज्ञ रोककर नागों की रक्षा की थी। नागपंचमी तिथि पर गोबर या मिटटी का पांच फणों वाला सुन्दर नाग बनाकर भक्तिपूर्वक पूजा करने का विधान है। लोग अपने घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर गोबर से बड़े-बड़े नाग बनाते हैं और दूध, शुभ दुर्वांकुरों, कनेर-मालती-चमेली-चम्पा के फूलों, गंधों, अक्षतों, धूपों तथा मनोहर दीपों से उनकी पूजा करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को घृत, मोदक तथा खीर का भोजन कराना उत्तम माना जाता है। सनातन धर्म में नागों की रक्षा का व्रत है नागपंचमी पूजा।
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