हाजीपुर: ऑस्कर में इन दिनों धमाल मचा रही है फिल्म ‘चम्पारण मटन’। सेमीफाइनल राउंड तक का सफर तय करने वाली इस फिल्म का लेखन और निर्देशन वैशाली के लाल रंजन कुमार ने किया है। हाजीपुर स्थित मीनापुर मधुवन के रहने वाले रंजन रविवार की शाम हाजीपुर में थे। उन्होंने कहा कि शुभकामनाएं दीजिए, कि फिल्म आॉस्कर जीते और वैशाली ही नहीं बिहार और देश का नाम रौशन हो। बताया कि इसी वर्ष भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान से फिल्म निर्देशन और पटकथा लेखन में पीजी की पढ़ाई की है। मेरी स्टूटेंट एकेडमी ऑस्कर अवार्ड के लिए चयनित फिल्म ‘चम्पारण मटन’ नैरेटिव कैटेगरी में चुनी गई है। यह पांच बैचमेट की डिप्लोमा फिल्म है। इसमें उनके अलावा चार अन्य बैचमेट शामिल हैं।
ऑस्कर के सेमीफाइनल में ‘चम्पारण मटन’
रंजन ने बताया कि इस अवार्ड के लिए करीब 600 से अधिक कॉलेजों ने हिस्सेदारी निभाई। करीब 200 देशों की 2400 से अधिक फिल्में शामिल हुई थीं। सेमीफाइनल राउंड की बात करें तो 63 फिल्मों ने स्थान बनाया। इसमें नैरेटिव कैटेगरी में 17 फिल्में, एक्सपेरिमेंटल कैटेगरी-14, एनीमेशन कैटेगरी-15 और डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में 17 फिल्मों का चयन किया गया है। फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन किया है मुजफ्फरपुर की मीनाक्षी श्रीवास्तव ने। जबकि शुभम् घाटगे जो बारामती महाराष्ट्र के हैं। उन्होंने इस फिल्म में साउंड डिजाइन और साउंड रिकार्डिंग का काम किया है। खास बात यह है कि इस फिल्म की शूटिंग बारामती में ही हुई है। इसके अलावा आधिथ सत्विन तमिलनांडू के रहने वाले हैं, जिन्होंने छायांकन का काम किया और वैष्णवी कृष्णन ने संपादन किया, जो तमिलनांडू की रहने वाली हैं।
मेरे ननिहाल पर केंद्रित है कहानी डिप्लोमा फिल्म ‘चम्पारण मटन’ अभी सेमीफाइनल स्टेज में है। उम्मीद है कि आगे का सफर आसानी से तय करेगी। रंजन ने बताया कि फिल्म की पटकथा इसलिए लिखी कि मेरा ननिहाल चंपारण में है। मैंने बचपन से देखा है कि जब छठ का परना होता है, तो मटन खाने के लिए लोग कैसे उत्साहित रहते थे। मेरी मां भी अच्छा मटन बनाती थीं। इसके अलावा इलाके की बात करें तो गरीब-गुरबा मटन के लिए अलग तरह की लालसा रखता था। जिसे मैंने बचपन से देखा। यह फिल्म एक गरीब परिवार की कहानी है। इसमें एक युवक नौकरी लॉक डाउन के दौरान चली जाती है। आगे ऐसे स्थिति उत्पन्न होती है कि वह मटन अपने परिवार को नहीं खिला पाता। किस तरह से वह मटन खरीदकर लाता है, और उसे पकाता है।
फिल्म में मैंने इस मटन की जर्नी को एक ताना-बाना बुना है। समाज में जो चल रहा है, उसे व्यंग्य सटायर के रूप में उजागर करने की कोशिश किया हूं। उन्होंने कहा कि करीब दो महीने बाद मैं अपने घर आया हूं। ऑस्कर वालों ने बड़ी फाइल (प्रो रेज्यूलेशन फाइल) मंगवाई थी। फिल्मों की दुनिया में जाने के इक्षुक वैशाली और बिहार के युवाओं के लिए सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि जहां से भी सीखने को मिले उसे सीखने की कोशिश करें। सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
फिल्म में इन्होंने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
फिल्म चंदन राय अभिनीत है, जो वैशाली जिले के महनार के मूल निवासी हैं। अभिनेत्री फलक खान मुजफ्फरपुर की हैं। वहीं अरहत बेगूसराय, अमन झा जंदाहा और मीरा झा दरभंगा की रहने वाली हैं। इसके अलावा श्रीराम बाबू प्रसाद और हेमराज सौरभ मधेपुरा और सारण के अभिषेक राज ने फिल्म में एक्ट किया है। रंजन कुमार खुद भी एक जगह फिल्म में अभियन करने नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश रहने वाली मनीषा मिश्रा ने कॉस्ट्यूम डिजाइन किया है। कला निर्देशन दिल्ली के रहने वाले सुनील चंद्राणी ने किया है।
कहानी लिखने सीखने के लिए काफी भटका
रंजन ने बताया कि एक समय ऐसा था कि मुझे कहानी लिखनी नहीं आती थी। कई बार कवि सम्मेलनों में जाता था, वहां लोगों से जानने की कोशिश करता था कि कहानी कैसे लिखते हैं। एक बार मेरी मुलाकात ऊषा किरण खान से हुई। उन्होंने मूल मंत्र दिया कि लिखने से ज्यादा पढ़ा करो। मैंने काफी पढ़ाई की।
फणिश्वरनाथ रेणू, विनोद कुमार शुक्ल, हरिशंकर परसाई, प्रेमचंद आदि की किताबें काफी पढ़ीं। पैसे की तंगी के बीच मैंने पढ़ाई की। उन दिनों महेंद्रू में रहता था। यह वे चीजें जो मुझे जीवन को जीने की अच्छी समझ देती हैं। गांवों में रहने वाले लोगों की भावनाओं को कैसे कैमरे के सामने प्रस्तुत करना है। इसको मैंने सीखा। शुभकामनाएं दीजिए, कि फिल्म आॉस्कर जीत कर वैशाली का लाल बिहार का नाम रौशन करे।
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