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कैमूर के महादेव खोह में विश्वामित्र ने की थी तपस्या, सावन में उमड़ता है भक्तों का हुजूम; जानें रहस्य

सासाराम: भगवान शिव को प्रिय सावन का पवित्र माह शुरू हो गया है। इसके साथ सासाराम के विख्यात महादेव खोह में शिवभक्तों का आना आरंभ हो गया है।  जिला मुख्यालय से दक्षिण की दिशा में कैमूर पहाड़ी की तराई में स्थित महादेव खोह की दूरी लगभग 79.6 किलोमीटर है।  बताया जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने यहां तपस्या की थी। विश्वामित्र का आश्रम महादेव खोह से सात किमी दूर उल्ली गांव में स्थित है। जहां विश्वामित्र के आश्रम मे अति प्राचीन शिवलिंग है।

Hindustan Special Vishwamitra did penance in Kaimur Mahadev Khoh even today  devotees throng in Savan month know secret - Hindustan Special: कैमूर के महादेव  खोह में विश्वामित्र ने की थी तपस्या, सावन

कैमूर पहाड़ी की तराई में स्थित महादेव खोह में भगवान शंकर का अतिप्राचिन मंदिर है। मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसका वेदों में कहीं वर्णन नहीं मिलता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर का निर्माण आदि काल हुआ था। महादेव खोह आस्था का केन्द्र के साथ पिकनिक स्पॉट भी है। सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। जिला ही नहीं, बल्कि बिहार के अन्य जिलों समेत झारखंड, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से भी श्रद्धालु यहां बाबा के दर्शन करने आते हैं।

जलप्रपात का दृश्य काफी मनोरम है

महादेव खोह पहुंचने के लिए नौहट्टा प्रखंड के उदयपुर गांव से तीन किलोमीटर जंगल के रास्ते पैदल सफर कर पहुंचा जा सकता है। रास्ते में पड़ने वाले जंगल का नजारा काफी सुकून देने वाला होता है। महादेव खोह पहुंचने के साथ जलप्रपात का दृश्य देखना काफी मनोरम है। पहाड़ियो के बीच से झरने को देखना काफी मनमोहक होता है।

कई कहानियां हैं प्रचलित

स्थानीय लोगों का कहना है कि अयोध्या से राम-लक्ष्मण को लेकर महर्षि विश्वामित्र उल्ली पहुंचे थे। सोन के मध्य मे स्थित दसशीशानाथ का दर्शन करने के बाद महादेव खोह के रास्ते चेनारी गुप्तेश्वर धाम होते हुए बक्सर गये थे। बक्सर मे ताड़का का वध करने के बाद भगवान राम ने महर्षि के यज्ञ का समापन कराया था। आर्श्चय की बात है कि दसशीशानाथ, महादेव खोह व गुप्ताधाम एक सीधी रेखा में हैं।

इलाके के जानकार लोगों का कहना है कि महादेव खोह से ही महर्षि विश्वामित्र त्रिशंकु को स्वर्ग भेज रहे थे। राजा हरिश्चन्द्र ने महादेव खोह में ही विश्वामित्र को अपना राजपाट दान में दिया था।

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