संतान के दीर्घ जीवन और आरोग्य के लिए रखा जाने वाला जीवित्पुत्रिका व्रत शुक्रवार को नहाय- खाय के साथ आरंभ होगा। इस तीन दिवसीय अनुष्ठान के दूसरे दिन शनिवार को महिलाएं निर्जला व्रत रखेगी।
पूजा में जीमूतवाहन की कुशा से प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। फिर उस मूर्ति पर धूप-दीप, चावल, पुष्प, सिंदूर आदि अर्पित किया जाता है। इस अवसर पर जिउतिया व्रत की कथा सुनी जाती है और संतान की लंबी आयु और कामयाबी की प्रार्थना की जाती है।
इस बार कुल मिलाकर 35 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाएगा। जितिया व्रत का उल्लेख महाभारत में मिलता है, दरअसल अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्नास्त्र का इस्तेमाल किया। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया।
गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। बाद में यह राजा परीक्षित के नाम से जाना गया। पारण 18 सितंबर की शाम 4:49 बजे के बाद होगा। व्रति भात, मरुआ की रोटी और नोनी का साग ग्रहण कर इस व्रत का समापन करेंगी। इधर जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर गुरुवार को बाजारों में खरीदारी को लेकर महिलाओं की भीड़ देखी गई।
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