बिहार का मगध विश्वविद्यालय एक ऐसा शिक्षण संस्थान है जहां ग्रेजुएशन करने के 20 साल बाद भी एक छात्र को डिग्री नहीं मिली। इस बीच आने जाने और विवि का चक्कर लगाने में उसके 1 लाख रुपये खर्च हो गये। यहां छात्रों को डिग्री के लिए भटकना आम बात हो गई है। तीन साल स्नातक की पढ़ाई करने के बाद छात्र अपने ही डिग्री के लिए यूनिवर्सिटी का चक्कर लगा रहे हैं। पटना के रहने वाले छात्र शंभू शरण सिंह 20 साल से अपनी डिग्री के लिए विश्वविद्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन उन्हें अपनी डिग्री अभी तक नहीं मिल पाई।
दसअसल, पटना के रहने वाले शंभू शरण सिंह ने सत्र 2002 में गणित विषय से स्नातक किया। अपनी डिग्री हासिल करने के लिए वे तब से विश्वविद्यालय का दौड़ लगा रहे हैं। इसमें एक लाख से ज्यादा रुपए खर्च कर चुके हैं। इसके बाद भी उन्हें डिग्री नहीं मिली है। वे बताते हैं कि विश्वविद्यालय की करतूत से छात्र परेशान हैं। मगध विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त करना बहुत ही टेढ़ी खीर है। विश्वविद्यालय द्वारा 20 साल से मूल प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि 31 अक्टूबर 2002 में को बीएससी गणित ( प्रतिष्ठा ) की मूल प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए 230 रुपये रसीद कटवाकर जमा किया। रसीद कटवाने के बाद पंद्रह साल तक डिग्री लेने के लिए विश्वविद्यालय आते जाते रहे।
इसके लिए उस समय के कुलपति और परीक्षा नियंत्रक से भी मिले। पर मामला जस की तस रहा। उन्होंने सूचना के अधिकार का सहारा लिया। 2015 और 2019 में सूचना का अधिकार के तहत आवेदन दिए। फिर भी सुनवाई नहीं हुई। द्वितीय अपील के लिए सूचना आयोग जाने पर विवि ने सूचित किया कि नये सिरे से आवेदन और शुल्क जमा करने पर 15 दिनों में डिग्री बनाकर सूचित किया जाएगा। इस पर दुसरी बार आवेदन और शुल्क जमा किया। फिर भी डिग्री नहीं मिली। फिर आरटीआई से जबाब मांग तो परीक्षा नियंत्रक कार्यालय से फोन आया कि डिग्री बना दी गई है।
जब डिग्री मिली तो उस पर उत्तीर्ण वर्ष गलत था। जिसे उन्होंने सुधार के लिए फिर से जमा करा दिया। इस मामले में परीक्षा नियंत्रक डॉ गजेंद्र कुमार गदकर से ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि यह मामला संज्ञान में आया है। इसकी पड़ताल कर छात्र की समस्या दूर की जाएगी। हालांकि अब ज्यादातर डिग्री महाविद्यालय में ही भेज दी जा रही है।
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