भारत में कोरोनावायरस संक्रमण से मौ’त को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर भारतीय जानकारों ने नारा’जगी जाहिर की है। उन्होंने ‘सभी के लिए एक ही नीति’ पर निरा’शा जताई। साथ WHO के गणना करने के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं। संगठन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि दो सालों में दुनियाभर में करीब 1.5 करोड़ लोगों की मौ’त हुई है। जबकि, भारत में संक्रमण के चलते 47 लाख लोगों ने जा’न गं’वाई।
जानकारों के मुताबिक, ‘जब कोविड से मौतें हो रहीं थी, तो मौतों की परिभाषा नहीं थी। यहां तक की WHO के पास भी नहीं थी। अगर कोई आज संक्रमित हो और दो सप्ताह बाद मर जाए, तो क्या वह कोविड से मौ’त होगी? या उसकी मौ’त 2 महीने या 6 महीने बाद हो, तो क्या वह कोविड से मौ’त होगी?’ ‘इस परिभाषा के लिए हमने सभी डेटा को देखा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोविड-19 जांच में संक्रमित होने के बाद 95 फीसदी मौ’तें पहले 4 हफ्तों में हुईं। ऐसे में मौ’त की परिभाषा के लिए 30 दिनों का कट-ऑफ रखा गया।’
पॉल ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि भारत वैश्विक निकाय को पूरी विनम्रता से और राजनयिक चैनलों के जरिए, आंकड़ों और तर्कसंगत दलीलों के साथ स्पष्ट रूप से कहता रहा है कि वह अपने देश के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘…अब जबकि सभी कारणों से अधिक मौ’तों की वास्तविक संख्या उपलब्ध है, केवल मॉडलिंग आधारित अनुमानों का उपयोग करने का कोई औचित्य नहीं है।”
पॉल ने कहा, ‘… दुर्भाग्य से, हमारे लगातार लिखने, मंत्री स्तर पर संवाद के बावजूद, उन्होंने मॉडलिंग और धारणाओं पर आधारित संख्याओं का उपयोग चुना है।’ उन्होंने कहा कि भारत जैसे आकार वाले देश के लिए इस तरह की धारणाओं का इस्तेमाल किया जाना और ‘हमें खरा’ब तरीके से पेश करने से सहमत नहीं है। राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी परामर्श समूह (एनटीएजीआई) के अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने रिपोर्ट को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि कई विकसित देशों की तुलना में भारत की मृ’त्यु दर (प्रति दस लाख) सबसे कम है।
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