साढ़े तीन सदी से ज्यादा का वक्त गुजर गया ‘हैं और आज भी ताजमहल का आकर्षण बरकरार है। सलाना सवा सौ करोड़ रुपए की कमाई इसकी गवाही भी देती है। इस कमाई के बावजूद अनदे’खी और ला’परवाही श्वेत-सौंदर्य पर भा’री पड़ने लगी है।
हा’लात न सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब कत्थई सा और पीला ताजमहल दिखना नसीब हो। गौरतलब है कि हर साल 60 लाख से ज्यादा पर्यटक ताजमहल का दीदार करते हैं।
वायु प्र’दूषण के साथ-साथ यमुना की तलहटी में नमी से पनपने वाले गोल्डी काइरोनोमस की’ड़े ताजमहल को बद’रंग कर रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रसायन शाखा ने इस पर अध्ययन किया है। उसके मुताबिक, ताजमहल की सतह पर की’ड़ों की गतिविधियों को कम करने के लिए कुछ जांच की गईं। उपयुक्त अनुपात में कुछ तत्वों का घोल तैयार किया गया। ताजमहल पर लगाया भी गया। बड़ी संख्या में की’ड़े इसमें फं’स गए।इसके बावजूद कोई समाधान नहीं खोजा जा सका है। की’ड़ों में कुछ नए तरह के की’ड़ों के आने से पत्थरों का रंग कत्थई भी हो रहा है। इस पर भी रसायन शाखा जांच कर रही है। वहीं कीड़ों का ह’मला जारी है। ऐसे में साल दर साल सफेद पत्थरों पर दागों का दायरा बढ़ रहा। इन्हें संवारने और मूल स्वरूप में लाने के लिए संरक्षण का बजट दो करोड़ सालाना के पास पहुंच चुका है। मगर मुलतानी मिट्टी के लेप के आगे नहीं बढ़ सका है।
विशेषज्ञों की मानें तो यमुना की गंदगी ताजमहल के लिए परे’शानी का कारण बनी हुई है। पीले और कत्थई होते संगमरमर के साथ उखड़े पत्थर, किनारियों पर उगे पौधे संरक्षण के दावों की कलई खोल रहे हैं। मुख्य मकबरे के कई हिस्सों में लगे काले पत्थर निकल या टू’ट चुके हैं। ताजमहल में जहां भी पत्थर टूटे होंगे। उनके संरक्षण का काम शुरू होगा स्मारक पर दाग नहीं लगने देंगे।
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