मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर के लाल शरद ने टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक में जिलेवासियों की मुरादें पूरी कर दीं। उसने जिले ही नहीं राज्य और देश का नाम भी रोशन किया है। शरद ने (टी-42) हाई जंप इवेंट में 1.83 मीटर ऊंची छलांग लगाकर यह पदक अपने नाम किया।
जैसे ही शरद के पदक जीतने की घोषणा हुई, मुजफ्फरपुर के लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। खेल प्रेमियों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। सभी खुशी से झूम उठे।
शरद मोतीपुर के कोदरकट्टा के रहने वाले हैं। हालांकि, उनका परिवार अभी पटना में रहता है। उनके पिता सुरेंद्र कुमार ने कहा कि मेरा बेटा पैरालंपिक में सफल होगा, इसकी मुझे पूरी आशा थी। उन्होंने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि मेरे बेटे ने कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है।
शरद की मां कुमकुम कुमारी, भाई सनत कुमार और बहन अदिती कुमारी तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। सभी जश्न में डूबे थे। उन्होंने लोगों को मिठाइयां खिलाकर अपनी खुशी का इजहार किया। अपने भाई की जीत की खुशी में सभी मगन थे। शरद के माता-पिता का कहना था कि हमारे लिए इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी कि हमारे बेटे ने देश का नाम रोशन किया है। अब हमें उसके नाम से जाना जाएगा। यह किसी भी माता-पिता के लिए गर्व की बात होती है। हमें अपने बेटे पर गर्व है।
इधर, शरद के गांव कोदरकट्टा के लोगों में भी काफी खुशी देखी गयी। यहां के युवा शाम पांच बजे से ही प्रतियोगिता का परिणाम जानने के लिए उत्सुक थे। शरद के घर पर परिणाम जानने के लिए आसपास के लोगों की भारी भीड़ जुट चुकी थी।
जैसे ही ग्रामीणों को शरद के पदक जीतने की सूचना मिली, पूरा गांव जश्न में डूब गया। लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर जीत की मुबारकबाद दी। शरद के चाचा महेंद्र राय समेत अन्य ने पटना में रह रहे उनके माता-पिता को फोन कर जीत की बधाई दी।
शरद की जीत पर मुजफ्फरपुर जिले के खेल से जुड़े सभी संगठनों ने खुशी जतायी है। खेल संगठनों का कहना है कि शरद की इस जीत से जिले के युवाओं को प्रेरणा मिलेगी। अब जिले के युवा इस क्षेत्र में और अधिक उत्साह से तैयारियों में लगेंगे।
जानकारी हो कि शरद इससे पहले भी कई प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन कर चुके हैं। कई विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में भी मेडल जीत चुके हैं। शरद को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी सम्मानित कर चुके हैं।
परिजनों ने बताया कि शरद दो साल की उम्र में ही पोलियोग्रस्त हो गये थे। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। माता-पिता की मदद और अपनी मेहनत के बदलौलत उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। युक्रेन के कोच ने शरद को ट्रेनिंग देकर उसका हौसला बढ़ाया।
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