खरमास और ठंड के कारण बिहार की राजनीति थोड़ी ठंडी पड़ी हुई है। लेकिन दही-चूड़ा के साथ ही यह वापस से नई रफ्तार पकड़ लेगी और पटरी पर दौड़ने लगेगी। क्योंकि इसी साल विधानसभा का चुनाव भी है। लिहाजा अभी राजनीतिक पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ इस चुनाव की तैयारी में लग जाएगी और एक साथ जुटान से बातचीत में ही रणनीति भी तैयार हो जाएगी। हालांकि, ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या इस बार दही-चुड़ा भोज में कोई बड़ी ‘सियासी खिचड़ी’ तैयार होगी ?
दरअसल, बिहार के लिए यह साल काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है और इसकी वजह साफ़ है कि यह चुनावी साल है और इस साल जो कुछ भी होगा यह अगले पांच साल का भविष्य तय करेगा। ऐसे में साल के पहले पर्व से हर किसी को काफी नएपन का भरोसा है। सबसे पहले राज्य मंत्रिमंडल में विस्तार की चर्चा के साथ एनडीए के विधायक ओर विधान पार्षद सदस्यों के मन में गुदगुदी शुरू हो गई है। इसके बाद एनडीए हो या महागठबंधन दोनों तरफ के वैसे नेता जो इस बार विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार हैं उनका इस भोज में दही तिलक के साथ विजय अभियान शुरू हो जाएगा। लेकिन, अब देखना यह है कि इस बार किनका दही तिलक होता है और कौन सिर्फ दूर-दूर से ही निहारते रह जाते हैं।
वहीं, 15 जनवरी को एक और नई सियासी खिचड़ी जिस घर पकने वाली है वह घर है पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस का है। रालोजपा दही-चूड़ा भोज के साथ यह तय कर सकती है कि इनकी गाड़ी किसके साथ इस विधानसभा चुनाव में दौड़ेगी। क्योंकि इन्होंने इस भोज में न सिर्फ एनडीए बल्कि महागठबंधन के भी बड़े नेताओं को निमंत्रण दिया और इनके पुराने जख्म अभी भी पूरी तरह से भरे नहीं है या कह लें कि अभी ताजे हैं .ऐसे में यह चाहेंगे कि इनके जख्म भरने का इंतजाम पुराने लोग कर दें या फिर नए दोस्त के मिलकर अपने जख्मों का इलाज करवा सकते हैं।
इसके अलावा राजद की तरफ से भी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर दही चूड़ा का भोज होगा। यह कहना मुश्किल है कि इसमें कौन-कौन से नेता शामिल होंगे। इसकी वजह तेजस्वी का हालिया बयान हो सकता है, हालांकि तेजस्वी ने बड़ी ही चालाकी के साथ अपने बयान से बिहार कि राजनीति को किनारा कर दिया है। लेकिन समझदार के लिए इशारा काफी होता है और उनके सहयोगी यह बात समझ गए हैं। लिहाजा यह कहना मुश्किल होगा कि इनके घर के भोज में सारे गिले-शिकबे भुलाकर सभी लोग शामिल होते हैं या नहीं। क्योंकि,लालू यादव सत्ता में रहे या उससे दूर इनके दरवाजे पर सत्ता में काबिज लोग और उससे दूर हुए लोग दोनों भोज में नजर आते रहे हैं। ऐसे में इस बार एनडीए के घटक दलों के नेता शामिल होंगे या नहीं यह देखने वाली बात होगी। इसकी वजह यहां के भोज का राजनीतिक संदेश भी होता। हालांकि, राजद की तरफ से अभी दही चुरा भोज को लेकर तिथि तय नहीं हुई।इधर कांग्रेस के तरफ से भी प्रदेश कहां से मुख्यालय सदाकत आश्रम में 14 जनवरी को भोज आयोजित है। हालांकि मूल पार्टी ने इसका आयोजन नहीं किया है बल्कि इस भोज का आयोजन अलग तरीके से किया गया। वहीं भाजपा कार्यालय में मकर संक्रांति की भोज का आधिकारिक आयोजन नहीं किया गया है। लेकिन पार्टी के कुछ नेता मंत्री निजी तौर पर भोज देते हैं और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का नाम भी इसमें शामिल है, ऐसा कहा जा रहा है कि वह लखीसराय में भोज दे सकते हैं।
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