मुजफ्फरपुर: अक्सर यह देखा गया है कि बिना काम की वस्तुओं में दीमक लग जाता है। यही दीमक अगर काम की वस्तुओं को चट कर जाएं तो इसे क्या कहेंगे… निसंदेह यह व्यवस्था की लापरवाही है। रखरखाव के अभाव में बिहार की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी बीआरएबीयू में दस वर्ष के रिजल्ट को दीमकों ने चाट लिया। परीक्षा विभाग में रखे छात्रों के टेबुलेशन रजिस्टर दीमक के चाटने से पूरी तरह सड़ गये हैं। अब इनके एक भी पन्ने काम के लायक नहीं हैं। हिन्दी के सुविख्यात कवि नरेश सक्सेना कविता है- दीमकों को पढ़ना नहीं आता, वे चाट जाती हैं पूरी किताब। यहां तो दीमकों ने छात्रों की डिग्रियां ही चट कर दी।
विवि के परीक्षा नियंत्रक प्रो टीके डे का दावा है कि इन खराब टेबुलेशन रजिस्टर के पन्नों को डिजिटल बनाया गया है लेकिन विभाग के सूत्र बताते हैं कि जिस एजेंसी को टीआर को डिजिटल बनाने का काम सौंपा था उसने पूरा काम नहीं किया। बीआरएबीयू में वर्ष 1980 से 1990 और उससे से भी दस वर्ष पहले के रिजल्ट खराब हो गये हैं। इन टीआर को परीक्षा विभाग में बिना किसी देखभाल के फेंक दिया गया है। इन टेबुलेशन रजिस्टर के पन्नों को छूते ही वह फट जाते हैं। इन टीआर को कोई हाथ भी नहीं लगाता है।
छात्रों को नहीं मिल रहा है सर्टिफिकेट
बीआरएबीयू में पिछले दिनों सारे लंबित सर्टिफिकेट को बांटने का अभियान चलाया गया। इस अभियान में वर्ष 1990, 1995 और वर्ष 1998 के कई पूर्ववर्ती छात्र बिहार विवि के परीक्षा विभाग पहुंच गये। इन छात्रों को 33 वर्ष बाद भी प्रोविजनल सर्टिफिकेट नहीं मिला था। जब यह पूर्ववर्ती छात्रों ने अपना प्रोविजनल सर्टिफिकेट और मार्कशीट मांगा तो विभाग के कर्मचारियों के हाथ-पैर फूलने लगे। कर्मचारियों का कहना था कि अब इतना पुराना टीआर कहां से खोजें। इन पूर्ववर्ती छात्रों को कहा गया कि अब इन्हें मूल प्रमाणपत्र ही भेज दिया जायेगा। प्रोविजनल सर्टिफिकेट नहीं मिल सकता है।
बीआरएबीयू में वर्ष 2020 में लखनऊ की एक एजेंसी को टीआर को डिजिटल करने के लिए लाया गया था। इसके लिए बिहार विवि प्रशासनस ने एजेंसी से करार किया था। एजेंसी को वर्ष 1960 से वर्ष 2020 तक के रिजल्ट और टेबुलेशन रजिस्टर को डिजिटल करना था लेकिन कंपनी ने वर्ष 2022 तक काम पूरा नहीं किया। इसके बाद राजभवन से एजेंसी के काम पर रोक लगा दी गई।
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