साल 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले जातीय जनगणना का शोर तेज है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर अब कांग्रेस भी इस एजेंडा में भागीदारी करती नजर आ रही है। हालांकि, कहा जा रहा है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस कप्तान बनने के बजाए क्षेत्रीय दलों को कमान संभालने दे सकती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद इस जातीय जनगणना को लेकर सभी विपक्षी दलों की बिहार में बड़ी बैठक हो सकती है। इधर, कांग्रेस ने अब तक बिहार में बैठक के प्रस्ताव पर आधिकारिक हामी नहीं भरी है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जानकार इस बात के संकेत दे रहे हैं कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस खुद पीछे रहकर क्षेत्रीय दलों को आगे बढ़ा सकती है। कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना को बढ़ावा देकर कांग्रेस भविष्य के लिए अपनी ऐसी जमीन तैयार कर रही है, जहां शायद वह गठबंधन की कमान न संभाले।
एक्सपर्ट्स के अनुसार, जातीय जनगणना कांग्रेस का एजेंडा नहीं है। मुद्दे का प्रचार कर कांग्रेस कह रही है कि वह मंडल दलों को अगुवाई करने देगी और खुद पीछे रहकर काम करेगी। रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि सीएम कुमार के करीबी कह चुके हैं कि सामाजिक न्याय दलों के साथ कांग्रेस शामिल हो चुकी है। उन्होंने कहा, ‘सामाजिक न्याय दल मोर्चे की अगुवाई कर रहे हैं। कांग्रेस भी इसमें शामिल है। जेडीयू, सपा, बसपा और डीएमके जैसे कई क्षेत्रीय दल सामाजिक न्याय की राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं।’
खास बात है कि आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय के मामले में कांग्रेस के रिकॉर्ड खास नहीं रहा है। एक ओर जहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में जातिगत जनगणना का विरोध किया था। वहीं, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी मंडल आयोग की रिपोर्ट के पक्ष में नहीं थीं।
संभावनाएं जताई जा रही हैं कि कर्नाटक चुनाव के बाद विपक्षी दल मई के तीसरे या चौथे सप्ताह में मुलाकात कर सकते हैं। खबरें हैं कि कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिहार में बैठक का प्रस्ताव दिया है, जिसका सीएम कुमार स्वागत कर रहे हैं। हालांकि, बैठक कहां होगी, इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।
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