वर्ष 2019 में Acute encephalitis syndrome यानि चमकी बुखार से बिहार में 144 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी. तब कहा जाने लगा था कि इसका लीची से भी कनेक्शन है. हालांकि जब जांच हुई तो साफ हुआ कि चमकी बुखार का लीची से कोई संबंध नहीं और ये एक दुष्प्रचार था. हालांकि इस बार चमकी बुखार तो नहीं लेकिन कोरोना लॉकडाउन (Corona lockdown) का इस कारोबार पर सीधा असर पड़ता दिख रहा है.
मुजफ्फरपुर में 500 करोड़ का लीची कारोबार
दरअसल पूरे देश में लगभग एक लाख हेक्टेयर में लीची की खेती होती है और करीब 7.5 लाख टन लीची का उत्पादन होता है. पूरे देश में होने वाली लीची फसल का 40 प्रतिशत उत्पादन बिहार में ही होता है. ये कारोबार 1000 करोड़ से ज्यादा का है, जिसमें सिर्फ मुजफ्फपुर से ही करीब 500 करोड़ का लीची व्यापार होता है.
एडवांस देकर भी व्यापारी नहीं आ रहे
लेकिन, इसबार अनुमान लगाया जा रहा है कि कोरोना संकट की वजह से लीची की खेती करने वाले किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है. दरअसल कई जगहों पर बगीचे मालिकों को व्यापारियों ने एडवांस तो दे दिए लेकिन लॉकडाउन के कारण वे दोबारा नहीं लौटे और न ही किसी प्रकार से संपर्क किया है.
बाहर के व्यापारियों पर निर्भर है कारोबार
बिहार राज्य लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह के अनुसार ओला-बारिश से जो 10 प्रतिशत नुकसान तो जरूर है पर उत्पादन अच्छा होगा. पर व्यापारियों के नहीं आने से लीची किसान चिंतित हैं. दरअसल किसान खुद तो व्यापार नहीं करते बल्नकि बाहर से आए लीची व्यापारियों पर निर्भर रहते हैं.
लॉकडाउन की वजह से इस बार व्यापारी आ नहीं रहे हैं ऐसे में लीची किसानों को काफी नुकसान पहुंचने की आशंका है. कोरोना के कारण बाजार खुलने के आसार नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में लीची का कारोबार पूरी तरह चौपट हो जाएगा.
मधुमक्खी पालन के कारोबार पर भी असर
यही नहीं लीची उत्पादन के साथ मधुमक्खी पालक अपनी मधुमक्खियों को लेकर बिहार के लीची के बागों में पहुंच जाते थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से नहीं पहुंच पाए हैं.
मुज्जफरपुर लीची अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ विशाल नाथ के अनुसार, यही सही समय होता है, जब मधुमक्खियां लीची के परागण में मदद करती हैं, बिहार के मधुमक्खी पालकों के साथ ही उत्तर प्रदेश से भी लोग आते हैं, जो इस बार नहीं आ पाएं, अगर मधुमक्खियां नहीं होंगी तो उत्पादन पर तो असर पड़ेगा.
Source: News18
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