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…तो इस वजह से भी कोविड-19 की वैक्‍सीन बनाने में हो सकती है दिक्‍कत, रिसर्च में हुआ खुलासा

हम सब ये जान चुके हैं कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के तीन प्रकार अलग-अलग तरह से प्रकोप मचा रहे हैं। इस वजह से वैज्ञानिकों के सामने इसकी दवा को विकसित करना एक बड़ी चुनौती बन गई है। ग्‍लोबल टाइम्‍स के मुताबिक एक नई रिसर्च में ये बात निकलकर सामने आई है कि आने वाले छह महीने में जब तक दवा आएगी तब तक वायरस में कई बदलाव आ चुके होंगे।

इसको देखते हुए वैज्ञानिकों को इस बात का भी डर सताने लगा है कि इसकी दवा विकसित होने के बाद भी ये जरूरी नहीं होगा कि वो दूसरे मरीज पर भी कारगर साबित हो। लिहाजा वैज्ञानिकों के लिए असल चुनौती इस वायरस के अलग-अलग प्रकारों के लिए अलग-अलग दवाएं और टीके तैयार करने की होगी। आपको बता दें कि दुनिया में 70 से अधिक टीका बनाने के प्रोजेक्ट चल रहे हैं और इससे ज्यादा दवाओं के हैं।

चीन के झिजियांग यूनिवर्सिटी की रिसर्च में ये बात निकल कर आई है कि वुहान के बाद कोविड में म्यूटेशन के कारण इसके कुछ स्टेन या प्रकार घातक हुए हैं। खासकर कोरोना वायरस का जो प्रकार यूरोप में सक्रिय हैं, वे इसी घातक म्यूटेशन के चलते है। यूरोप से ही कोरोना का ये प्रकार न्यूयार्क पहुंचा था। जबकि अमेरिका के बाकी हिस्सों खासकर वाशिंगटन राज्य में कोरोना का जो प्रकार पाया गया वो न्‍यूयॉर्क के मुकाबले कम घातक हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि वैज्ञानिकों ने इन बदलाव को पहले गंभीरता से नहीं लिया जिसके चलते मौत और संक्रमण के मामले ज्यादा हुए। लेकिन शोध में ये बात सामने आने के बाद ही यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉक्‍टर लंजुन की सलाह पर वुहान में लॉकडाउन का फैसला किया गया था। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 वायरस में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। इनमें से कई एकदम नए हैं जो आने वाले दिनों में वायरस की कार्यप्रणाली में भी बदलाव ला सकते हैं, जिसकी वजह से भविष्‍य में इसको लेकर बनने वाली कोई भी एक दवाई दूसरे मरीज पर कारगर साबित नहीं होगी।

 

आपको यहां पर बता दें कि वैज्ञानिकों ने अब तक कोरोना के जिन तीन प्रकारों का पता लगाया है उनको ए, बी और सी वायरस का नाम दिया है। इसको लेकर अमेरिका के माउंट सिनाई अस्‍पताल में इसके जीनोम पर आधारित शोध किया गया। इसके अलावा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में भी इसको लेकर शोध हुआ जिसमें इसके तीन प्रकारों की पुष्टि की गई थी। इन रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि अमेरिका के न्‍यूयॉर्क में कोरोना वायरस के जिस प्रकार ने कोहराम मचाया हुआ है वह यूरोप से आई है। इसके अलावा अमेरिका के ही पश्चिम में चीन से आई कोरोना की नस्‍ल ने कोहराम मचाया हुआ है। आपको यहां पर ये भी बता देते हैं कि न्‍यूयॉर्क में कोरोना का ए टाइप कहर बरपा रहा है जो सी टाइप के मुकाबले करीब 270 गुणा अधिक घातक है।

शोधकर्ताओं का ये भी मानना है कि इसी वायरस का बदला हुआ रूप टाइप बी है। इसकी वजह से भी चीन में हजारों लोगों की जान गई है। टाइप बी भी यहां के बाद यूरोप, दक्षिण अमेरिका और कनाडा तक जा पहुंचा। टाइप सी की बात करें तो इसने सिंगापुर, इटली और हांगकांग में हजारों की जान ली है। हालांकि शोधकर्ता मानते हैं कि अमेरिका में सबसे अधिक मरीज टाइप ए कोरोना वायरस से संक्रमित हैं जो चीन से दूसरे देशों से होता हुआ अमेरिका में पहुंचा था।

इसको लेकर ताजा शोध साइंस जर्नल मैड रैक्सीव में प्रकाशित हुआ है। इसमें शोधकर्ताओं का दावा है कि म्यूटेशन से वायरस के विभिन्न स्ट्रेन में बदलाव आए हैं। कहीं यह घातक हुआ है तो कहीं कमजोर पड़ा है। चीन के नेशनल सेंटर फॉर बायोइंफार्मेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक दुनिया में कोरोना वायरस के दस हजार नमूनों की जांच हुई है जिसमें 4300 म्यूटेशन रिकॉर्ड किए गए हैं।

Source: Jagran

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