कुछ लोग बेहतर शिक्षा लेकर नौकरी करते हैं और मेहनत कर अपनी जिंदगी को बेहतर बनाते हैं। इस बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं और जो अपने शिक्षा की बुनियाद पर खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए रोजगार और रोटी की व्यवस्था करते हैं। झारखंड के रांची के एक एमबीए प्रोफेशनल ने ऐसा ही कर दिखाया है।
प्राइवेट कंपनी में करीब 10 साल नौकरी कर चुके रांची का युवक निशांत ने ऐसा ही कर दिखाया है। निशांत नौकरी छोड़ कर मछली पालन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई और कौशल के बल पर मत्स्य पालन को एक नया आयाम दिया है। एमबीए मछुआरा के रूप में निशांत बगैर तालाब के मछली पाल रहे हैं।
राजधानी रांची के रातू रोड के रहने वाले निशांत ने करीब 10 साल पहले एमबीए की पढ़ाई की और नौकरी में चले गए। लेकिन दो 2018 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर आकर मछली पालन शुरू किया। उन्होंने मछली पालन के देशी और विदेशी तकनीक पर रिसर्च किया। खासकर वे इंडोनेशिया के मछली पालन तकनीक से प्रभावित हैं।
निशांत कहते हैं कि प्राकृतिक तालाब के साथ-साथ आर्टिफिशियल टैंक और तालाब बना कर भी मछली पालन अच्छे से हो सकता है। 15 से 20 हज़ार लीटर पानी के क्षमता वाले टैंक में लगभग 3 क्विंटल मछली पाली जा सकती है। इस टैंक को बायो फ्लॉक कहा जाता है। निशांत ने 5 दर्जन से ज्यादा बायो फ्लॉक बनवाया हुआ है। प्रतिदिन लगभग रु.35000 की मछली बाजार भेजी जाती है। निशांत अपने बायो फ्लॉक में देसी के साथ-साथ विदेशी ब्रीड की मछलियां भी पालते हैं। जिसकी बाजार में बेहतर मांग है।
अपने रोजगार में निशांत ने सात रेगुलर स्टाफ को नौकरी दी है। इसके अलावा लगभग 50 लोग जुड़े हुए हैं जो निशांत के साथ काम करके अपनी आजीविका चला रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जिला मत्स्य विभाग की ओर से आवश्यक सहयोग और लाभ दिया जा रहा है।
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