मुजफ्फरपुर : कोरोना काल के दौरान विगत तीन वर्षों से बंद पड़ा स्कूली कारोबार इस वर्ष जेब पर डाका डाल रहा है। मिली जानकारी के मुताबिक, मिठनपुरा के संजीव कुमार समेत कई अन्य स्वजन इसे कोरोना लू’ट करार दे रहे हैं। 2020 में निजी स्कूलों की फीस 1500 से 3000 के बीच थी। अब यह बढ़कर 2000 से 3500 रुपये हो गई है। पेपर महंगे होने से किताबों के दाम दोगुने हो गए हैं। वहीं फैब्रिक महंगे होने के कारण स्कूली ड्रेस 50 प्रतिशत तक महंगे हो गए हैं।
ख़बरों के मुताबिक, निजी स्कूलों में ट्यूशन फी से लेकर हर चीज महंगी होने के कारण घर का बजट बिगड़ रहा हैं। खान-पान से लेकर हर चीज में कटौती करनी पड़ रही है। प्राइवेट नौकरी वालों के लिए बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना मुश्किल हो गया है। दो बच्चे हैं। उनके ड्रेस में ही आठ हजार रुपये लग गए। किताब भी आठ हजार का हो गया। फीस पांच हजार रुपये देना पड़ा। यह एक स्वजन की पी’ड़ा नहीं है। बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाले हर स्वजन की परेशानी है। कक्षाओं के हिसाब से फीस निर्धारित की गई है।
इंडियन एसोसिएशन आफ स्कूल्स के सुमन कुमार का कहना है कि जिले के किसी भी प्राइवेट स्कूल में फीस बढ़ाने से पहले कमिश्नर को इसकी जानकारी देनी होगी। उनको बताना होगा कि वे फीस क्यों बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि स्कूल प्रबंधन अगर स्कूल को माडल बनाता है तो फीस बढ़ाने का उन्हें हक है। अगर कोई स्कूल ऐसे ही फीस बढ़ाता है तो यह सही नहीं है। स्वजन तिरहुत आयुक्त को इस बात की शिकायत कर सकते हैं।
कोरोना काल में भी ट्यूशन फीस के अलावा एनुअल चार्जेज, कम्प्यूटर फीस, स्मार्ट क्लास, जेनरेटर, स्पोर्ट्स, मेंटेनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिल्डिंग फंड, ट्रांसपोर्ट व अन्य प्रकार के फंड व चार्जेज वसूल किए गए। जो लोग फीस देने में सक्षम नहीं हुए, उनसे रिएडमिशन कर नए सिरे से पूरा पैसा ले लिया गया। प्राइवेट स्कूलों ने बड़ी चतुराई से कुल फीस के 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से को ट्यूशन फीस में बदल कर लूट को जारी रखा है। निजी शिक्षण संस्थानों के ऊपर किसी तरह का कानून लागू नहीं होने से स्वजन कंगाल हो रहे हैं।
प्राइवेट स्कूलों को किताब से भी कमाई होती है। अन्य पुस्तकों में दस से 20 प्रतिशत की छूट मिल जाती है, लेकिन प्राइवेट स्कूल के बुक स्टालों पर किसी तरह की छूट कापी-किताबों पर नहीं मिलती। आगे कक्षा के बच्चे नीचे वाले कक्षा के बच्चों को पुरानी किताब शेयर न कर दें, इसलिए हर साल कुछ न कुछ सिलेबस बदल दिए जाते हैं। इस कारण स्वजन नए किताब खरीदने को मजबूर होते हैं।
Be First to Comment