बिहार: बेतिया में आज भी अंग्रेजों का कानून ‘कोर्ट ऑफ वार्ड’ लागू है। इसी कानून के तहत बेतिया राज की जमीन का प्रबंधन और डाक किया जा रहा है। बेतिया राज की जमीन का खेती के लिए हर साल डाक होता है।
मिली जानकारी के मुताबिक, प्रत्येक साल वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च के लिए सात सौ एकड़ जमीन की डाक की जाती है। इसमें बेतिया में अकेले पांच सौ एकड़ जमीन की डाक की जा रही है। मोतिहारी, छपरा, सीवान व गोपालगंज में दो सौ एकड़ से अधिक जमीन की डाक होती है। इसी कानून के तहत एडीएम के नेतृत्व में कमेटी कचहरी लगाकर जमीन की डाक करते हैं।बता दें कि इसी कानून के तहत अंग्रेजों ने बेतिया राज की जमीन ह’ड़पकर किसानों से नील की खेती कराई थी। तब महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान किसानों को नील की खेती से मुक्ति दिलाई थी। लेकिन आज भी यह कानून बरकरार है। किसानों को खेती की जमीन के लिए प्रत्येक साल बो’ली लगानी पड़ रही है। कई बार उनके तैयार किए हुए खेत दूसरे अधिक बो’ली लगाकर ह’थिया लेते हैं। ऐसे में किसानों को नुक’सान झे’लना पड़ता है।
1820 में यहां नील की खेती के पचकटिया कानून लागू था। 1859 में तीन कटिया कानून की शुरुआत हुई। 17 अप्रैल 1917 को नील की खेती के खि’लाफ महात्मा गांधी ने मोतिहारी से आंदोलन की शुरुआत की।
कोर्ट ऑफ वार्ड कानून ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से 1560 से 1660 तक इंग्लैंड में मौजूद कोर्ट ऑफ वार्ड्स एंड लिवरीज के समान मॉडल पर बनाया गया था। कानून का उद्देश्य वारिस नहीं होने या वारिश के नाबालिग होने पर उसकी संपत्तियों की रक्षा करना था। बेतिया में 1897 में कोर्ट ऑफ वार्ड कानून लागू किया गया। इसी कानून के बल पर अंग्रेजों ने बेतिया राज की जमीन हथि’या ली। पूर्व से चली आ रही नील की खेती को चरम पर पहुंचा दिया।बेतिया राज के मैनेजर बताते हैं कि वारिस नहीं होने की वजह से कोर्ट ऑफ वार्ड कानून आज भी यहां लागू है। इसी कानून के तहत मैनेजर से लेकर अधिकारी तक को प्रबंधन और रख-रखाव की शक्ति दी गई है।
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