पटना: बिहार के सकरारी स्कूलों में छठी-सातवीं के आठ लाख बच्चे जो दूसरी और तीसरी की किताबें न ठीक से पढ़ पाते हैं, न ही समझ पाते हैं। इन बच्चों को चिह्नित कर समर कैंप में विशेष तौर पर पढ़ाया जा रहा है। शिक्षा सेवक और जीविका के संसाधन सेवी के अलावा डायट, एनसीसी कैडेट्स, स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी इन कमजोर बच्चों की पढ़ाई को मजबूत करने में जुटे हैं। 30 जून तक इनकी पढ़ाई जारी रहेगी।
मालूम हो कि बिहार शिक्षा परियोजना परिषद ने समर कैंप शुरू होने के पहले सूबे के सभी 29 हजार मध्य विद्यालयों के प्राचार्यों से इन कमजोर बच्चों को चिह्नित कर सूची तैयार करने को कहा था। इसमें ज्यादातर छठी और सातवीं कक्षा के 30 से 40 फीसदी बच्चे शामिल हैं। ये बच्चे किस टोला और मोहल्ले में रहते हैं, इसकी सूची सभी स्वंयसेवक (वोलेंटियर) को दी गई है, जो अब बच्चों को पढ़ा रहे हैं ताकि वे अपनी कक्षा की किताबों को बेहतर ढंग से समझ सकें।
समर कैंप से अभी तक 80 हजार स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं। इनमें 26 हजार शिक्षा सेवक और 30 जीविका के संसाधन सेवी हैं। इसके अलावा प्रथम संस्था (एनजीओ), डायट, एनसीसी कैडेट्स, स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी भी शामिल हैं। इन सभी को बिहार शिक्षा परियोजना परिषद द्वारा तैयार 3100 से अधिक मास्टर ट्रेनर ने प्रशिक्षित किया है। पटना डीईओ अमित कुमार के अनुसार 30 मई तक प्रशिक्षण चला और एक से पांच जून तक बच्चों से स्वयंसेवकों ने संपर्क किया है।
हर दिन बच्चों का मूल्यांकन स्वयंसेवकों द्वारा पढ़ाने के बाद बच्चों का मूल्यांकन किया जा रहा है। मूल्यांकन के बाद प्रोग्रेस शीट भी तैयार हो रही है। इसके साथ जांच प्रपत्र भी हर दिन भरे जा रहे हैं। जांच प्रपत्र में बच्चे का नाम, गांव का नाम, जिला का नाम, स्वयंसेवक का नाम, बच्चे की आयु आदि भरना हैं।
असर की रिपोर्ट में निकली थी बातें असर 2023 की रिपोर्ट के अनुसार कक्षा छठीं और सातवीं के 42.4 फीसदी बच्चे दूसरी और तीसरी कक्षा की किताबें नहीं पढ़ पाते हैं। अक्षर की पहचान भी बच्चों की कमजोर है।
इसी रिपोर्ट को समर कैंप में आधार बनाया गया है। इसके अलावा एक से आठवीं की वार्षिक परीक्षा में ई ग्रेड प्राप्त बच्चों को भी समर कैंप में पढ़ाया जा रहा है। इन बच्चों को वार्षिक परीक्षा में 30 फीसदी से कम अंक प्राप्त हुए। इसकी संख्या राज्य भर में 24 हजार है।
इस कारण पढ़ाई में पिछड़े
● कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल लंबे समय तक बंद रहा
● बच्चों का पाठ्यक्रम के अनुसार प्रगति नहीं होना
● जो बच्चे अभी छठी और सातवीं में है, उनकी बुनियाद चौथी और पांचवी में ही खराब हो गयी
● बच्चे बिना पढ़े अगली कक्षा में प्रमोट कर दिये गये थे
● बच्चों का स्कूल नियमित नहीं आना
● शिक्षकों द्वारा हर बच्चे पर ध्यान नहीं देना
अब ऐसे हो रही है पढ़ाई
● रोजाना एक से डेढ़ घंटे तक पढ़ाई कराई जा रही
● भाषा में सुधार के लिए बच्चों से हर दिन एक और दो अनुच्छेद लिखवाया जा रहा है
● शब्दों को ध्वनि के आधार पर बताया जा रहा
● शब्द भंडार की ज्यादा से ज्यादा गतिविधियां करवायी जा रही
● हर दिन 15 मिनटगणित के खेल व 25 मिनट कहानी गतिविधियां हो रही
क्या कहते हैं पदाधिकारी?
स्कूलों की ओर से बच्चों की सूची उपलब्ध हो रही है। छठीं और सातवीं के 42 फीसदी बच्चे हैं, जो दूसरी और तीसरी कक्षा की किताबें नहीं पढ़ पाते हैं और न ही समझ पाते हैं। ऐसे बच्चों को अधिक फोकस किया जाएगा।
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