मुजफ्फरपुर: बिहार में भीषण गर्मी पड़ रही है। पारा 41 डिग्री पर पहुंच गई है। इससे शाही के बाद अब चाइना लीची पर भी संकट गहराने लगा है। तापमान अधिक होने से लीची का छिलका झुलसने लगा है। दस फीसदी से अधिक लीची का फल फट गया है, जिसके कारण किसानों व व्यापारियों की चिंता बढ़ गई है। लीची को बचाने के लिए किसान बागों में पटवन भी शुरू कर दिए हैं। लीची के लिए विश्वविख्यात मुजफ्फरपुर में लीची किसान मौसम की मार से नुकसान में जा रहे हैं। खर्च बढ़ रहा है तो फल जलने की संभावना से कीमतें कम हो रही हैं।
तापमान 40 के पार चला गया है
कुछ किसान भाड़े पर टैंकर लेकर सुबह सात बजे से पूर्व व संध्या पांच बजे के बाद पेड़ों पर पानी का छिड़काव शुरू कर दिए हैं, ताकि लीची को अनुकूल तापमान मिल सके। उद्यान्न रत्न लीची किसान भोलानाथ झा ने बताया कि पांच साल में पहली बार लीची की तुड़ाई के समय तापमान 40 के पार चला गया है, जबकि चाइना लीची के लिए अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होनी चाहिए। हमलोग लीची को सिंचाई और छिड़काव से ही बचा सकते हैं। सुबह-शाम बाग में छिड़काव कर रहे हैं, ताकि नमी बनी रहे। इससे छिलके फटने की संभावना कम रहेगी। लीची व्यापारी मो. निजाम ने बताया कि एक सप्ताह से चाइना लीची की निगरानी कर रहा हूं।
समय से पूर्व तोड़ने लगे चाइना लीची
कांटी के किसान सह व्यापारी भोला त्रिपाठी ने बताया कि इस बार मौसम की मार से मंजर कम आया और जब फल तैयार होने का समय आया तो तैयार लीची गर्मी से झुलसने लगी है। वर्तमान में लीची की मांग अधिक है। कांटी के किसान ज्यादातर लखनऊ, दिल्ली लीची भेज रहे हैं। अभी लीची के 10 किलो का पैकेट 12 सौ रुपये से लेकर दो हजार में बिक रहा है। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक जिले में 12 हजार हेक्टेयर में लीची का बाग है, जिसमें 60 फीसदी चाइना लीची का बाग है, जबकि 40 फीसदी में ही शाही किस्म की लीची है।
क्या कहते हैं लीची वैज्ञानिक?
इस बार तापमान बढ़ने से शाही और चाइना दोनों किस्म की लीची प्रभावित हुई है। अब अगले सीजन से लीची के दाने लगने के बाद जिंक और बोरन दोनों से छिड़काव करनी होगी तभी लीची का छिलका मजबूत हो सकता है और फटने का भय नहीं रहेगा।
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