सिर, गर्दन के पिछले हिस्से, कानों के नीचे तेज असहनीय दर्द जिसे फैंटम पेन यानी प्रेत पीड़ा भी कहा जाता है। पटना डेंटल कॉलेज में हुए रिसर्च में पाया गया है कि इसका बड़ा कारण जबड़ों का अपनी जगह से खिसकना है। कानों के ठीक नीचे से उभरने वाले इस दर्द से पी’ड़ित व्यक्ति सामान्य मेडिसिन अथवा न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञ के पास इलाज कराने पहुंचता है।
सिर के सिटी स्कैन, गर्दन का एक्सरे में भी मरीज की बड़ी राशि खर्च होती है। बावजूद इसके मरीज को राहत नहीं मिलती है। प्रेत पीड़ा के दर्द का सही तरीके से आकलन नहीं हो पाना इसका मुख्य कारण है। ये निष्कर्ष पटना डेंटल कॉलेज अस्पताल के रेडिएशन विभाग के हेड प्रो. डॉ. प्रदीप कुमार झा ने पांच वर्षों में लगभग 600 मरीजों पर शोध के बाद निकाला है। इस शोध का प्रकाशन डेंटल-मेडिकल के जर्नल में भी हो चुका है।
डॉ. प्रदीप ने बताया कि प्रेत पीड़ा को मेडिकल भाषा में मायोफेशियन पेन डिस्फंक्शन सिन्ड्रोम (एमपीडीएस) कहते हैं। टेम्पेरोमेन्डिवुलर ज्वाइंट (जबड़े के खुलने व बंद होने वाला जोड़), लिगामेंट, मांसपेशियां, कार्टिलेज डिस्कग्लिनोवाइड फोसा और हेड ऑफ कोन्डाइल की गड़बड़ी इस दर्द का मुख्य कारण है। जबड़े की गतिविधियों के लिए मशल्स ऑफ मेस्टीकेशन जिम्मेवार होता है। इसमें विकृति आने पर दर्द शुरू हो जाता है।
डेंटल कॉलेज में प्रतिमाह इस बीमारी से पी’ड़ित 20 से 25 मरीज पहुंचते हैं। डॉ प्रदीप ने बताया कि एमपीडीएस जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रेत पीड़ा कहते हैं इसके अन्य प्रमुख कारणों में सामान्य प्रसव के दौरान बच्चे के सिर के आसपास पड़ने वाला दबाव और खेलकूद के दौरान लगने वाली चोट भी है। इससे टीएम जोड़ भी चो’टिल हो जाता है। यही चोट उम्र के 40 से 50वें वर्ष में उभरने लगती है। इसके अलावा दांत किटकिटाने वाले, लंबे समय तक गुटखा का सेवन करने वाले भी इस बीमारी से पीड़ित होते हैं।
शुरुआत में यह मामूली सिर दर्द जैसा रहेगा लेकिन कुछ दिन बाद यह असहनीय हो जाता है। मुंह खोलते और बंद करते समय हल्की आवाज भी इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। सर्जरी अथवा पारंपरिक तरीके से इस बीमारी का इलाज होता है।
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