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बेटी पढ़ाओ की रियलिटी : बिहार में 18.2 फीसदी बेटियां पांच साल से कम कर पाती हैं पढ़ाई

बिहार की 18.2 प्रतिशत बच्चियां पांच साल तक या उससे कम ही स्कूल में पढ़ाई कर पाती हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की वर्ष 2019-21 की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इसमें छात्र-छात्राओं के स्कूली शिक्षा पूरी करने के वर्ष के बारे में अलग से विश्लेषण कर बताया गया है कि पांच वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक कितने छात्र और छात्राएं स्कूली पढ़ाई पूर कर पाते हैं।

रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ लड़कियां ही नहीं, लड़कों की भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पा रही है। सूबे में 21.8 प्रतिशत छात्र भी पांच वर्ष या उससे कम पढ़ पाते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। तिरहुत प्रमंडल के क्षेत्रीय उप निदेशक (शिक्षा) जीवेंद्र झा का कहना है कि स्कूलों में ड्रॉपआउट रोकने के लिए सभी जिलों में अभियान चल रहा है। इसकी मॉनिटरिंग भी हो रही है। आकांक्षी जिला में शिक्षा के क्षेत्र में मुजफ्फरपुर को अवार्ड भी मिला है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट आई है तो सभी जिलों के डीईओ से इस पर बात की जायेगी।

फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है पूरे सूबे में 9.3 प्रतिशत बच्चियां और 16.5 प्रतिशत बच्चे ही 12 वर्ष या उससे अधिक की स्कूली शिक्षा पूरी कर पाते हैं। 13.9 प्रतिशत बच्चियां पांच से सात वर्ष तक की स्कूली शिक्षा ले पाती हैं। 11.6 प्रतिशत बच्चियां आठ से नौ वर्ष तक और सिर्फ 8.1 प्रतिशत बच्चियां 10 से 11 वर्ष तक अपनी पढ़ाई स्कूल में जारी रख पाती हैं। सूबे में 38.9 प्रतिशत बच्चियां पूरी तरह स्कूल से ड्रॉपआउट हैं।

पड़ोसी राज्य हमसे बेहतर स्थिति में

 

बच्चियों की पढ़ाई के मामले में पड़ोसी राज्य हमसे बेहतर स्थिति में है। उत्तर प्रदेश में पांच वर्ष या उससे कम स्कूली शिक्षा पाने वाली बच्चियों की संख्या 14.2 है, वहीं झारखंड में 16.2 प्रतिशत बच्चियां पांच वर्ष से कम स्कूल जा पाती हैं। पश्चिम बंगाल में सिर्फ यह आंकड़ा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से अधिक है। यहां 20.9 प्रतिशत बच्चियां पांच वर्ष या उससे कम अपनी पढ़ाई पूरी करती हैं।

बीच सत्र में पांच प्रतिशत छात्र छोड़ रहे स्कूल

 

कूली शिक्षा पूरी नहीं करने के अलावा बीच सत्र में भी सूबे के छात्र स्कूल छोड़ रहे हैं। फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि पांच प्रतिशत छात्र और दो प्रतिशत छात्राएं सत्र के बीच में स्कूल छोड़ देती हैं। बीच सत्र में स्कूल छोड़ने वाले में उत्तर प्रदेश और झारखंड की स्थिति हमसे खराब है। उत्तर प्रदेश में सात प्रतिशत और झारखंड में 6.3 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं।

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