पटना : केंद्र में एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल को अभी ढाई महीने ही हुए हैं। लेकिन खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान सरकार को झटके पर झटके देते जा रहे हैं। लोजपा रामविलास के मुखिया चिराग ने पहले एससी-एसटी आरक्षण में सब कैटगरी और क्रीमी लेयर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुखर होकर विरोध किया। इसके बाद विपक्ष की देश भर में जातिगत गणना कराने की मांग का समर्थन कर दिया। फिर लोकसभा में लाए गए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का विरोध किया तो उसके ठीक बाद यूपीएससी में लैटरल एंट्री के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेर दिया।
चिराग पासवान के बदले रुख से एनडीए में हलचल मची हुई है। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाला है। इससे पहले चिराग बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। इसे लेकर सियासी गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं भी होने लगी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एससी-एसटी आरक्षण पर अहम फैसला सुनाते हुए इन वर्गों में ओबीसी की तरह क्रीमी लेयर और सब कैटगरी बनाने की मंजूरी दी थी। चिराग की पार्टी लोजपा रामविलास ने उसी दिन बयान जारी कर, शीर्ष अदालत के इस फैसले का विरोध किया था।
इसके बाद पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी कहा कि दलितों को आरक्षण छुआछूत के आधार पर मिला हुआ है, ऐसे में इसमें सब कैटगरी और क्रीमी लेयर का सवाल ही नहीं उठता है। बीते 22 अगस्त को विपक्ष द्वारा इस मुद्दे पर बुलाए गए भारत बंद का भी चिराग की पार्टी ने समर्थन किया था। वहीं बीजेपी के अन्य सहयोगी दलों ने इस मामले पर चुप्पी साधे रखी।
बता दें कि लोजपा में टूट के बाद चाचा और भतीजा आमने-सामने हो गए थे। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने चिराग के गुट वाली लोजपा को तरजीह देते हुए बिहार में पांच सीटें लड़ने के लिए दे दीं। वहीं, पशुपति पारस के गुट वाली रालोजपा को गठबंधन में साइडलाइन कर दिया गया था। अब फिर से पारस की बीजेपी नेताओं से मुलाकात से सियासी गलियारे में हलचल मची हुई है।
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