आम तौर पर भक्त ही भगवान का अनुसरण करते हैं लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने काशी में अपने परम भक्त हनुमान का अनुसरण किया। आप को अचरज हो रहा होगा लेकिन यह सच है। इसका साक्ष्य आनंद रामायण में विद्यमान है।
आनंद रामायण के यात्रा कांड के 35वें और 36वें श्लोक में वर्णन आया है कि भगवान राम के आगमन से पहले उनके परम भक्त हनुमान काशी आए। काशी में उन्होंने गंगा के तट पर सुंदर पत्थरों से एक विशाल घाट का निर्माण कराया। हनुमानजी द्वारा घाट का निर्माण कराए जाने के आधार पर लोगों ने घाट का नाम हनुमान घाट रख दिया। वेदमूर्ति पं. गणेश्वर शास्त्रत्त्ी द्रविड़ ने बताया कि इसके बाद 37वें और 38वें श्लोक में भगवान राम के काशी आगमन का उल्लेख यात्रा कांड में किया गया है।
दोनों श्लोकों का अर्थ यह है कि जिस प्रकार भक्त हनुमान ने गंगा तट पर पत्थर का घाट बनवाया ठीक उसी प्रकार प्रभु श्रीराम ने भी अत्यंत सुंदर पत्थरों से उत्तम घाट तैयार कराया जो कि आज भी काशी में रामघाट के नाम से विख्यात है। घाट निर्माण के उपरांत भगवान राम ने पंचगंगा स्नान किया। प्रभु जब काशी आए थे उस समय कार्तिक मास था। भगवान राम ने धर्मतत्पर होकर काशी में निवास किया। उन्होंने समस्त तीर्थवासियों को पृथक-पृथक रत्न, स्वर्ण, वस्त्रत्त्, अश्व, गाय, सोने-चांदी के पात्र, अमृततुल्य पकवान तथा शर्करामिश्रित दुग्ध के दान से प्रसन्न किया।आनंद रामायण के यात्रा कांड का वह पृष्ठ जिसपर घाट निर्माण का विवरण है। बीएचयू के पुरातत्वविद डॉ. अशोक कुमार सिंह अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि वर्तमान में जो हनुमान घाट और रामघाट प्रत्यक्ष हैं ये हनुमानजी और प्रभु राम द्वारा ही बनवाए गए घाट हैं ऐसा हो सकता। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि अब से तीन हजार साल पहले काशी में गंगा का प्रवाह वर्तमान बभनियांव क्षेत्र में था। पांच सौ साल तक गंगा वहीं रहीं। ऐसे में त्रेता युग में गंगा का प्रवाह पथ कहां रहा होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। यह अवश्य है कि उस काल में भक्त हनुमान और भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित घाटों का नाम गंगा के स्थान परिवर्तन के बाद भी बना रहा और अब तक चला आ रहा है।
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