कोरोना वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए देशभर में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन लगाया गया है लेकिन इसका सीधा प्रभाव भारत के गरीब और मजदूर वर्ग पर पड़ा है। पिछले दिनों जिस तरह से देश भर में मजदूर पलायन करते देखे गये वो इस देश की जमीनी हकीकत को दर्शाता है।
लॉकडाउन के कारण मजदूर वर्ग भूखा और पैदल अपने घरों को चल पड़ा था। जिसका खामियाजा कई मजदूरों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। पिछले दिनों कई मजदूरों की पैदल चलने और लगातार भूखे प्यासे रहने से मौत हो गई थी। इन्ही सबके बीच गैर-सरकारी संगठन ‘जन साहस’’ ने उत्तर और मध्य भारत के श्रमिकों के बीच टेलीफोनिक सर्वे से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं। आईये इन्हें जानते हैं।
राशन को तरसते मजदूर
इस सर्व के अनुसार, लॉकडाउन का प्रवासी मजदूरों की आजिविका पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। 3,196 निर्माण श्रमिकों पर किए गए सर्वे में यह पता चला है कि लॉकडाउन के चलते 92.5 फीसदी मजदूर एक से तीन सप्ताह तक अपना काम खो चुके हैं।
वहीँ इस सर्वे के अनुसार, 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास आगे के दिनों के लिए राशन नहीं बचा है। अगर लॉकडाउन को आगे बढ़ाया गया तो 66 फीसदी मजदूर एक सप्ताह तक ही खा-पी सकेंगे। इसके बाद उनके पास अपने घर को चलाने का कोई साधन नहीं बचेगा।
लॉकडाउन में फंसे मजदूर
ये सर्वे बताता है कि एक तिहाई मजदूर लॉकडाउन के चलते अभी भी शहरों में फंसे हैं, जहां उन्हें खाने-पीने और पैसे की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। वहीँ, करीब आधे प्रवासी मजदूर पहले ही गांवों जा चुके हैं। जहां वो राशन की कमी का सामना कर रहे हैं।
कर्ज से दबे मजदूर
इस सर्वे के अनुसार, 31 फीसदी मजदूर कर्ज से दबे हुए हैं जिसे वो चुकाना चाहते हैं लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। ये वो कर्ज है जो उन्होंने लोगों से उधार लिए है और ये कर्ज बैंकों से लिए गये कर्ज से तीन गुना है। इनमें से भी 79 फीसदी से ज्यादा कर्जदार वो मजदूर हैं जो आने वाले समय में पैसा वापस लौटने में सक्षम नहीं हैं। साथ ही एक दुखत बात यहां यह भी है कि इनमें से 50 फीसदी मजदूर ऐसे हैं जिन पर कर्ज न चुकाने के बदले जानलेवा हमलों की घटनाएं होने के आसार दिखते हैं।
सहारे तलाशते मजदूर
वहीँ इस सर्वे में शामिल 2655 मजदूरों का कहना है कि उनके पास रोजगार नहीं क्योंकि रोजगार है ही नहीं। वहीँ 1527 मजदूरों ने बताया कि वो अपने गांव लौटने की स्थिति में ही नहीं हैं। जबकि 2582 मजदूरों के घरों में राशन खत्म हो चुका है। इनमें से 78 लोग ऐसे हैं जो बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते। वहीँ, 483 लोग बीमारी का शिकार हैं। जबकि इस बीच मात्र 11 लोगों ने माना की उन्हें लॉकडाउन में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है।
पारिवारिक बोझ से दबे मजदूर
इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि 55 फीसदी मजदूरों ने करीब चार व्यक्तियों के परिवार को चलाया है। अपने परिवार के लिए इन मजदूरों ने प्रति दिन 200-400 रुपए कमाए हैं जबकि अन्य 39 फीसदी मजदूरों ने 400-600 रुपए प्रति दिन कमाए हैं।
यानी इन मजदूरों में से अधिकांश ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम दायरे से भी नीचे कमाई की है। जबकि दिल्ली जैसे मेट्रो शहर के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी कुशल-692 रुपए, अर्ध-कुशल-629 रुपए, अकुशल-571 रुपए है।
Source: Punjab Kesari
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