मुंगेर गंगा किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है। गंगा तट पर बसे रहने के कारण यहां आवागमन का जरिया गंगा मार्ग ही है। यही एक मात्र मार्ग था जो कि साउथ और नॉर्थ बिहार को जोड़ता था। आजादी के पूर्व से ही लोग मुंगेर में नावों से गंगा पार कर खगड़िया और बेगुसराय जाते थे। लेकिन अब मुंगेर में उतर वाहिनी गंगा तट स्थित जहाज घाट से जहाज पे से गंगा पार करना यादों में सिमट के रह जाएगा। श्री कृष्ण सेतु के बनने के बाद जहां लोगों को आने जाने में कई सहूलियत मिलेगी। वहीं दूसरी तरफ जो नाव से जुड़े धंधों से जुड़े हुए थे वे बेरोजगार हो जाएंगे। जानकार अवधेश कुमार द्वारा मिली जानकारी में उन्होने बताया कि जब से नाव का इजाद हुआ उस समय से ही लोग गंगा से आवागमन के लिए नावों का सहारा लिया करते थे। दशकों से नाव के स्वरूप में बदलाव आया पहले छोटी नाव चला करती थी जो धीरे धीरे बड़ी और बड़ी होती चली गई, जिसमें करीब 100 से अधिक यात्री आराम से बैठ गंगा पार कर लेते थे। इतना ही नहीं इन जहाजों पर बाइक भी लाद कर सवार कर उस पार ले जाया जाता था।
लेकिन इन सब के बीच मुंगेर गंगा नदी के इस पार और उस पार जहाज सेवा प्रदान करने वालों के साथ साथ इस पर आश्रित करीब 60 से 70 परिवार के सामने रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। घाटों पर नाश्ता पानी की दुकान लगाने वाले से लेकर जहाज घाटों तक यात्रियों को पहुंचाने वाले वाहन चालकों और उसपर काम करने वाले 35 से 40 कर्मचारी अब बेरोजगार हो जाएंगे। खबरों के अनुसार, जहाज संचालन के मैनेजर बताते है की गंगा ब्रिज के शुरू होते ही कई परिवार के सामने रोजगार की समस्या पैदा हो जाएगी। जहाज पे काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि कई सालों से वे जहाज पे काम कर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे पर अब जब जहाज बंद हो जाएगा तो उनके सामने दूसरा काम ढूंढने की समस्या खड़ी हो जाएगी। वैसे ही घाटों पे दुकान लगाने वाले और वहां वाहन चलाने वालों ने बताया कि उनकी ठीक ठाक कमाई हो जाया करती थी, पर अब उनके सामने भी आर्थिक समस्या का संकट सामने आ जाएगा।
वर्ष 2002 में काफी संघर्ष के बाद गंगा नदी में रेल सह सड़क पुल का तत्कालीन प्रधानमंत्री के द्वारा नींव रखा गया। लंबे इंतजार के बाद जब ब्रिज बन कर तैयार हो गया तो अब नाव के द्वारा गंगा नदी पार कर उस पार जाना यादों में ही सिमट कर रह जाएगा। नाव से जहां गंगा पार कर मुख्य सड़क तक जाने में करीब एक घंटा का समय लग जाता था। अब वह सड़क पुल से जाने पर मात्र 10 से 15 मिनट का समय लगेगा। साथ ही जिस तरह से कष्ट सह जान जोखिम में डाल लोग नावों से गंगा पार किया करते थे उससे भी आजादी मिल जाएगी। मिली जानकारी में 85 वर्षीय भोला पासवान बताते हैं कि बचपन से उसके पिता जहाजों के माध्यम से गंगा पार ले जाया करते थे। लेकिन अब पुल बन गया तो वे उससे पार कर बेगुसराय अपने परिवार से मिलने जाया करेगें। साथ ही कहा कि नाव की यात्रा वो काफी याद करेगें। अब फर्राटे से जब गाड़ियां पुल को क्रॉस करेगी तो लोगों को नाव से पार करने के समय का रोमांच जरूर याद आयेगा।
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