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कार्तिक पूर्णिमा: 35 साल बा’द श्रद्धा’लु नहीं लगा पा’एंगे गं’गा नदी में डुब’की, जानें व’जह

हरिद्वार में कार्ति’क पूर्णिमा गंगा स्ना’न रद होने के चल’ते हरकी पैड़ी पर पहरा बढ़ा दिया गया है। सोम’वार को हर’की पैड़ी पर कोई श्रद्धालु स्नान न कर सके, इसके लिए रवि’वार की शाम को ही हरकी पैड़ी पर बैरिके’डिंग कर दी गई है। गंगा स्नान को आने वाले लोगों को सो’मवार को वापस भेजा जाएगा।

जिला प्रशासन ने हरिद्वार में होने वाले का’र्तिक पूर्णि’मा के स्नान को निरस्त किया है। सी’माओं को सील करने के साथ ही हरकी पैड़ी पर बैरिके’डिंग लगा दी गई है। रविवार रात आठ बजे से ही पुलिसक’र्मियों की ड्यूटी लगाई गई है।

20 दरोगाओं के अलावा कई कांस्’टेबल की ड्यूटी लगाई गई है। हरकी पैड़ी पर आने वाले रास्ते मुख्’य प्रवेश द्वार पर, तिरछा पुल, न्यू संजय पुल, कांगड़ा घाट, पर बैरियर लगा दिए गए है। जहां तैनात पुलिस’कर्मी पूछताछ के बाद ही लोगों को हरकी पैड़ी की ओर भेजेंगे।

सोमवार सुबह स्थानीय लोगों को भी स्ना’न न करने की बात प्रशा’सन ने कही है। लेकिन कर्म’कांड को आने वाले लोगों को छूट दी जाएगी। यही कार’ण है कि ब्रह्मकुंड और अस्थि प्रवाह घाट पर बैरिके’डिंग नहीं की गई।

1984 के बाद पहली बार कार्ति’क पू’र्णिमा पर नहीं होगी भीड़
वर्ष 1984 के बाद यह पहला मौका होगा जब इस स्नान के दिन धर्म’नगरी के गंगा घाटों पर भीड़ नहीं उमड़ेगी। तब 31 अक्तूबर को तत्’कालीन प्रधान’मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ ही दिन बाद 8 नवंबर वर्ष 1984 को हुई कार्ति’क पूर्णिमा के दिन भी धर्मन’गरी में भीड़ नहीं थी। इस दिन लोग बेहद कम ही पहुंचे थे। क्यों’कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में कई जगह बवाल हुए थे। जिस का’रण लोग नहीं पहुंचे थे।

विशेष होता है आज का स्नान
हरिद्वार में कार्ति’क पूर्णिमा का स्नान विशेष माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर भगवा’न शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। जिससे देव’गण बहुत प्रसन्न हुए और भग’वान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक ना’मों में से एक है। त्रिपुरासुर के वध होने की खुशी में सभी देवता स्वर्ग’लोक से उतरकर दीपावली मनाते हैं।

महाभार’त काल से शुरू हुई परंपरा
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व महाभा’रत से भी जुड़ा है। कथाओं के अनुसार जब कौरवों और पांडवों के बीच महा’भारत का युद्ध समा’प्त हुआ। तब पांडव इस बात को लेकर बहुत ही परे’शान और दुखी हुए कि युद्ध में उनके कई सगे- संबंधि’यों की मृत्यु हो गई। असमय मृत्यु के कारण वे सोचने लगे कि इनकी आ’त्मा को शांति कैसे मिलेगी।

तब भगवान श्रीकृ’ष्ण ने पांडवों की चिंता को दूर करने के लिए कार्तिक शुक्ल’पक्ष की अष्टमी से लेकर कार्तिक पू’र्णिमा तक पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण और दीप’दान करने को कहा था। तभी से कार्तिक पूर्णि’मा पर गंगा स्नान और पितरों को त’र्पण देने के लिए इस तिथि का महत्व होता है। इसके साथ ही कार्ति’क पूर्णि’मा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानकदेव का ज’न्म हुआ था।

स्नान से होती है पुण्य की प्राप्ति
कार्ति’क पू’र्णिमा के दिन सूर्यो’दय से पहले उठ’कर पवित्र नदी में स्‍नान करने से पुण्‍य की प्राप्‍ति होती है। अगर पवि’त्र नदी में स्‍नान करना संभ’व नहीं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगा’जल मिला’कर स्‍नान किया जा सकता है।

कोविड-19 के निय’मों का पालन करते हुए सीमा’ओं से आने वाले श्रद्धालुओं को रोका जा रहा है। प्रशा’सन के आदे’शों का पालन कराया जा रहा है। नियमों के अनु’सार घाटों पर भीड़ एकत्रित नहीं होने दी जाएगी। हरकी पैड़ी पर पुलिस’कर्मियों की ड्यूटी लगा दी गई है।

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